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अफगान स्वास्थ्य मंत्री का भारत दौरा: तालिबान के साथ बढ़ते संबंध

अफगान स्वास्थ्य मंत्री मौलवी नूर जलाल जलाली का भारत दौरा कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह यात्रा भारत की अफगानिस्तान के प्रति दीर्घकालिक स्वास्थ्य सहयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। जलाली ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से मुलाकात की, जहां भारत ने अफगानिस्तान को दवाइयों और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति का आश्वासन दिया। इस दौरे का सामरिक महत्व भी है, क्योंकि यह पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय बन गया है। जानें इस यात्रा के पीछे की रणनीति और भविष्य की संभावनाएं।
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अफगान स्वास्थ्य मंत्री का भारत दौरा: तालिबान के साथ बढ़ते संबंध

अफगान स्वास्थ्य मंत्री की महत्वपूर्ण यात्रा

अफगानिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री मौलवी नूर जलाल जलाली का भारत दौरा कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा। यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले तीन महीनों में भारत आने वाले वह तीसरे तालिबान मंत्री हैं। इससे पहले, अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी और उद्योग मंत्री नूरुद्दीन अज़ीजी भी भारत का दौरा कर चुके हैं। दिल्ली एयरपोर्ट पर जलाली का स्वागत विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव आनंद प्रकाश ने किया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि यह यात्रा अफगान स्वास्थ्य प्रणाली के प्रति भारत की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दर्शाती है।


भारत का स्वास्थ्य सहयोग

यात्रा के दौरान, जलाली ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से मुलाकात की। इस बैठक में भारत ने अफगानिस्तान को दीर्घकालिक आधार पर दवाइयों, टीकों और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति का आश्वासन दिया। भारत ने कैंसर वैक्सीन सहित कई जीवनरक्षक टीकों का प्रतीकात्मक हस्तांतरण भी किया। उल्लेखनीय है कि भारत पहले ही अफगानिस्तान को 63,734 डोज़ इन्फ्लुएंजा और मेनिन्जाइटिस वैक्सीन तथा 73 टन आवश्यक दवाइयां भेज चुका है। भविष्य में 128 स्लाइस सीटी स्कैनर सहित एक बड़ा चिकित्सा कंसाइनमेंट भेजने की योजना है। यह दौरा ऐसे समय में हुआ है जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है और सीमा बंद होने से अफगान व्यापार प्रभावित हुआ है।


भारत की रणनीति और पाकिस्तान की चिंताएं

अफगान स्वास्थ्य मंत्री की भारत यात्रा दक्षिण एशिया की बदलती सामरिक स्थिति में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत ने बिना शोर मचाए, मानवीय सहायता के माध्यम से अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति को फिर से स्थापित किया है, जो पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय है। तालिबान शासन के बाद, अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय अलगाव में धकेल दिया गया था, लेकिन भारत ने हमेशा अफगान जनता के साथ संबंध बनाए रखा। यही कारण है कि तालिबान के मंत्री लगातार दिल्ली का दौरा कर रहे हैं।


पाकिस्तान की स्थिति

पाकिस्तान की चिंताओं की जड़ यही है। दशकों तक अफगानिस्तान को “रणनीतिक गहराई” समझने वाला इस्लामाबाद अब खुद हाशिये पर खड़ा है। सीमा बंद कर व्यापार रोकना और तालिबान पर दबाव डालने की नीति उलटी पड़ गई है। नतीजतन, काबुल ने दिल्ली की ओर देखना शुरू कर दिया है। भारत की रणनीति स्पष्ट है; वह अफगानिस्तान में न तो बंदूकें भेज रहा है और न ही सैनिक, बल्कि दवाएं, डॉक्टर और विश्वास भेज रहा है। यह सॉफ्ट पावर वास्तव में हार्ड पॉलिटिक्स से कहीं अधिक प्रभावी साबित हो रही है।


स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की भूमिका

जलाली की यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वास्थ्य एक ऐसा क्षेत्र है जहां मानवता की प्राथमिकता होती है। जब भारत कैंसर वैक्सीन या सीटी स्कैनर भेजता है, तो उसका संदेश केवल काबुल तक नहीं पहुंचता, बल्कि पूरे क्षेत्र में गूंजता है। पाकिस्तान की चिंता इस बात से भी है कि तालिबान अब अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के संकेत दे रहा है। भारत से तालिबान की बढ़ती नजदीकियां इस्लामाबाद के लिए खतरे की घंटी हैं, क्योंकि इससे उसका प्रभाव क्षेत्र सिकुड़ रहा है।


भविष्य की संभावनाएं

साफ शब्दों में कहें तो भारत ने अफगानिस्तान में वह कर दिखाया है जो पाकिस्तान बंदूक और दबाव से नहीं कर पाया। विश्वास के माध्यम से भारत ने वहां के नए शासकों का दिल जीत लिया है। यह दौरा भविष्य की संभावनाओं का संकेत है। खनन, ऊर्जा, हाइड्रो प्रोजेक्ट और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भारत की वापसी के संकेत स्पष्ट हैं। पाकिस्तान इस स्थिति से चिंतित है क्योंकि खेल अब उसके हाथ से निकल चुका है। भारत ने उपचार शुरू कर दिया है, और पाकिस्तान को इसका दर्द महसूस होने लगा है।