अफगानिस्तान-पाकिस्तान वार्ता में असफलता: क्या क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा है?
शांति वार्ता का उद्देश्य और प्रारंभ
नई दिल्ली : अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने के लिए अक्टूबर 2025 में इस्तांबुल में शांति वार्ता का आयोजन किया गया। इससे पहले, दोहा में एक बैठक में अस्थायी युद्धविराम पर सहमति बनी थी। हालांकि, सीमा पर झड़पें, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हमले और अमेरिकी ड्रोन की गतिविधियों ने दोनों देशों के रिश्तों को और जटिल बना दिया। इसी संदर्भ में तुर्की और कतर की मध्यस्थता में वार्ता का दूसरा दौर शुरू हुआ, जिसमें स्थायी शांति की उम्मीद की जा रही थी।
चार दिनों की वार्ता का परिणाम
चार दिनों की कड़वी बातचीत
25 अक्टूबर से शुरू हुई यह वार्ता 28 अक्टूबर को बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गई। पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व आईएसआई के स्पेशल ऑपरेशंस प्रमुख मेजर जनरल शहाब असलम ने किया, जबकि अफगान पक्ष का नेतृत्व उप-गृह मंत्री हाजी नजीब ने किया। प्रारंभिक सत्रों में माहौल सामान्य था, लेकिन तीसरे दिन पाकिस्तान ने तालिबान पर टीटीपी को नियंत्रित न करने का आरोप लगाया, जिससे बहस तेज हो गई। अफगान प्रतिनिधियों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि पाकिस्तान अपनी नाकामियों का दोष दूसरों पर डाल रहा है। स्थिति तब और बिगड़ गई जब पाकिस्तानी अधिकारी ने अपशब्दों का प्रयोग किया, जिससे बैठक का माहौल तनावपूर्ण हो गया।
अमेरिकी ड्रोन और आरोप-प्रत्यारोप
अमेरिकी ड्रोन और आरोप-प्रत्यारोप
अफगान पक्ष ने वार्ता के दौरान अमेरिकी ड्रोन की उड़ानों का मुद्दा उठाया और पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह वॉशिंगटन को अफगान हवाई क्षेत्र में ऑपरेशन की अनुमति दे रहा है। इस पर पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने कहा कि कतर के पास भी अमेरिकी एयरबेस हैं, फिर वह क्यों नहीं रोकता। इस टिप्पणी से माहौल और गरम हो गया। अफगान सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के बयान असंगत और गैर-राजनयिक थे, जिससे कतर और तुर्की के मध्यस्थ भी असहज हो गए।
वार्ता का अंत और चेतावनी
वार्ता का अंत और अफगानिस्तान की चेतावनी
28 अक्टूबर की सुबह, अफगान प्रतिनिधिमंडल ने वार्ता से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद, अफगान रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी कि यदि अफगान धरती पर हमला हुआ तो इस्लामाबाद को निशाना बनाया जाएगा। पाकिस्तान ने जवाब में अफगान सरकार पर टीटीपी को संरक्षण देने का आरोप दोहराया। इस वार्ता की विफलता ने दोनों देशों के बीच भरोसे की दीवार को और ऊंचा कर दिया है।
क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव
असफल रही वार्ता, क्षेत्रीय स्थिरता को गहरा झटका
तुर्की और कतर की मध्यस्थता के बावजूद वार्ता असफल रही, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को गहरा झटका लगा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दोनों देशों ने संवाद का रास्ता नहीं अपनाया, तो सीमा पर हिंसा बढ़ सकती है और दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ेगी। यह असफल वार्ता न केवल पाकिस्तान-अफगान संबंधों की जटिलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि बिना आपसी भरोसे के शांति की कोई भी पहल टिक नहीं सकती।
