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इंडोनेशिया के तोराजा समुदाय की अनोखी मृत्यु परंपरा: शवों के साथ जीने का अनूठा तरीका

इंडोनेशिया के तोराजा समुदाय की मृत्यु परंपरा अद्वितीय है, जहां शवों को ममी बनाकर घर में रखा जाता है और अंतिम संस्कार को एक भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस समुदाय में मृतकों के साथ जीने की परंपरा है, जिसमें परिवार के सदस्य शव के साथ बातचीत करते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का हिस्सा है, बल्कि सामाजिक पुनर्मिलन का अवसर भी है। जानिए कैसे तोराजा लोग अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई देते हैं और इस प्रक्रिया में क्या खास होता है।
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इंडोनेशिया के तोराजा समुदाय की अनोखी मृत्यु परंपरा: शवों के साथ जीने का अनूठा तरीका

तोराजा समुदाय की मृत्यु परंपरा


तोराजा समुदाय की मृत्यु परंपरा: अधिकांश संस्कृतियों में, मृत्यु के बाद शव को दफनाया या जलाया जाता है। लेकिन इंडोनेशिया के तोराजा समुदाय में, मृत्यु को जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक नई यात्रा की शुरुआत माना जाता है। यहां, जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसका अंतिम संस्कार तुरंत नहीं किया जाता। इसके बजाय, शव को सुरक्षित रखकर वर्षों तक घर में रखा जाता है, जैसे कि वह अभी भी जीवित हो।


ममीकरण की प्रक्रिया

ममीकरण की परंपरा:
दक्षिण सुलावेसी के ताना तोराजा क्षेत्र में यह परंपरा आज भी जीवित है। जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसका शरीर विशेष विधियों से ममी में बदल दिया जाता है। इसे पारंपरिक मकान 'टोंगकोनान' में रखा जाता है। परिवार के सदस्य उस शव के साथ बातचीत करते हैं, उसे भोजन परोसते हैं, और हर दो साल में उसे नए कपड़े पहनाने के लिए समारोह भी आयोजित करते हैं।


अंतिम संस्कार का महोत्सव

भव्य अंतिम संस्कार समारोह:
इस समुदाय में अंतिम संस्कार को एक भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें न केवल भावनाएं होती हैं, बल्कि भारी खर्च भी शामिल होता है। रिपोर्टों के अनुसार, तोराजा समाज में अंतिम संस्कार पर 500,000 डॉलर (लगभग 4 करोड़ रुपये) तक खर्च किया जा सकता है। यह समारोह अक्सर 5 दिनों तक चलता है, जिसमें सैकड़ों मेहमानों को आमंत्रित किया जाता है, भैंसों और सूअरों की बलि दी जाती है, और मृतक के लिए एक विशेष झोपड़ी बनाकर उसे अंत में जलाया जाता है।


शवों की देखभाल

शवों की देखभाल और सम्मान:
तोराजा समुदाय के लोग अंतिम संस्कार की भारी लागत वहन करने के लिए अक्सर वर्षों तक तैयारी करते हैं। कई परिवार अपनी पूरी जिंदगी इस एक आयोजन के लिए पैसे इकट्ठा करने में बिता देते हैं। जब तक आवश्यक धन इकट्ठा नहीं होता, शव को ममी के रूप में घर में रखा जाता है, और उसे सम्मान और देखभाल दी जाती है, जैसे कि वह एक जीवित व्यक्ति हो।


मृतकों के साथ जीने की परंपरा

मृतकों के साथ जीने की परंपरा:
तोराजा समुदाय में 'मृतकों के साथ जीना' केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि आस्था का हिस्सा है। यहां मृत्यु को एक भावनात्मक विदाई नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्मिलन का अवसर माना जाता है। वे मानते हैं कि मृतक की आत्मा तब तक मुक्त नहीं होती जब तक उसका विधिवत संस्कार न किया जाए। इसलिए अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को धार्मिक अनुष्ठानों, पारिवारिक एकता और पूर्वजों के सम्मान से जोड़ा जाता है।


पुनरावृत्ति यात्रा का उत्सव

मा'निने उत्सव:
तोराजा समुदाय में 'मा'निने' नामक उत्सव हर दो साल में आयोजित होता है। इस दौरान परिवार अपने प्रियजन की ममी को कब्र से निकालते हैं, उन्हें नहलाते हैं, नए कपड़े पहनाते हैं, और उनके साथ पारिवारिक समारोह मनाते हैं। यह परंपरा भूत और वर्तमान के बीच पुल बनाने का प्रयास है, जिससे युवा पीढ़ी को अपने पूर्वजों से जोड़ा जा सके।


जीवित साथी के साथ अंतिम संस्कार

जीवित साथी के साथ अंतिम संस्कार:
कई बार, जब किसी दंपति में से एक की मृत्यु हो जाती है, तो दूसरे साथी की मृत्यु तक शव को सुरक्षित रखा जाता है, ताकि दोनों का अंतिम संस्कार एक साथ किया जा सके। इसे 'पूया' कहा जाता है, जो एक धार्मिक और सामाजिक मान्यता है, जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि परलोक की यात्रा साथ ही पूरी होनी चाहिए। यह परंपरा भले ही आधुनिक दृष्टिकोण से अजीब या डरावनी लगे, लेकिन यह इस बात का प्रमाण है कि हर संस्कृति मृत्यु को अलग तरीके से देखती है।