ईरान और तालिबान के बीच बढ़ती नजदीकियां: जैश अल-अदल का प्रभाव

ईरान और तालिबान के रिश्तों में बदलाव
कई वर्षों तक एक-दूसरे के प्रतिकूल रहे ईरान और अफगान तालिबान के बीच संबंधों में सुधार हो रहा है। दोनों पड़ोसी देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हैं, क्योंकि ईरान एक शिया राष्ट्र है जबकि तालिबान एक कट्टर सुन्नी संगठन है। इन दोनों के बीच नजदीकी का मुख्य कारण आतंकवादी समूह जैश अल-अदल है, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान के सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय है।
तालिबान का ईरान से वादा
जैश अल-अदल का दावा है कि यह बलूच समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है और यह ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स पर हमले करता रहता है। तालिबान नेताओं ने 2021 में ईरान से यह वादा किया था कि वे इस समूह पर नियंत्रण पाने के लिए कदम उठाएंगे। दोनों पक्ष जैश अल-अदल की गतिविधियों पर नजर रखने और उसे कमजोर करने के लिए खुफिया जानकारी साझा कर रहे हैं।
जैश अल-अदल की ताकत का स्रोत
जैश अल-अदल ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच के सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय है। अमेरिका की वापसी के बाद, इस समूह ने छोड़े गए अमेरिकी हथियारों को अपने कब्जे में ले लिया, जिससे उनकी ताकत में वृद्धि हुई। ईरान इस समूह को एक खतरे के रूप में देखता है और तालिबान पर कार्रवाई करने का दबाव बना रहा है।
सुन्नी जिहादियों की गतिविधियां
दक्षिण-पश्चिमी ईरान में बलूच जातीय समूह से संबंधित जैश अल-अदल ने वर्षों से ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और अन्य सुरक्षा बलों पर घातक हमले किए हैं। यह समूह सुन्नी अल्पसंख्यकों और बलूच समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करता है। जैश अल-अदल ईरान पर धार्मिक भेदभाव और बलूच समुदायों के खिलाफ अत्याचार करने का आरोप लगाता है। यह समूह अब्दुल मलिक रिगी के नेतृत्व वाले जुंदुल्लाह के पतन के बाद अस्तित्व में आया था।