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क्या आसिफ अली जरदारी के बयान ने मुंबई हमले को जन्म दिया? जानिए फरहतुल्ला बाबर के दावे

फरहतुल्ला बाबर ने अपनी नई किताब में 2008 के मुंबई आतंकी हमलों को लेकर एक विवादास्पद दावा किया है। उन्होंने कहा कि आसिफ अली जरदारी के 'परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने' के प्रस्ताव ने पाकिस्तान की आईएसआई को नाराज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ। बाबर का यह दावा पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक-सैन्य समीकरणों पर नई बहस को जन्म दे रहा है। क्या वास्तव में जरदारी का बयान इस हमले का कारण बना? जानें पूरी कहानी।
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क्या आसिफ अली जरदारी के बयान ने मुंबई हमले को जन्म दिया? जानिए फरहतुल्ला बाबर के दावे

फरहतुल्ला बाबर का चौंकाने वाला खुलासा


पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के सलाहकार रहे फरहतुल्ला बाबर ने अपनी नई पुस्तक में 2008 के मुंबई आतंकी हमलों से जुड़ा एक विवादास्पद दावा पेश किया है। बाबर के अनुसार, जरदारी द्वारा भारत के साथ शांति स्थापित करने के लिए दिए गए 'परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने' के प्रस्ताव ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को इतना आहत किया कि इसके परिणामस्वरूप 26 नवंबर 2008 को मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ।


जरदारी का शांति प्रस्ताव और सेना की प्रतिक्रिया

बाबर ने अपनी किताब 'द जरदारी प्रेसिडेंसी: नाउ इट मस्ट बी टोल्ड' में उल्लेख किया है कि एक मीडिया कार्यक्रम में भारतीय पत्रकार करण थापर को दिए गए इंटरव्यू में जरदारी ने कहा था कि पाकिस्तान भी भारत की तरह परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। इस बयान ने पाकिस्तान की सेना और युद्ध समर्थक समूहों में हड़कंप मचा दिया।


बाबर के अनुसार, जरदारी का यह बयान सेना के पारंपरिक दृष्टिकोण के विपरीत था। उनका मानना है कि इसी कारण आईएसआई ने भारत के साथ शांति प्रक्रिया को बाधित करने के लिए आतंकवादी हमले की योजना बनाई। उन्होंने लिखा कि इस इंटरव्यू के चार दिन बाद, 26 नवंबर 2008 को मुंबई में एक भयानक आतंकी हमला हुआ, जिसमें 166 निर्दोष लोगों की जान गई।


शांति प्रयासों पर प्रभाव

बाबर का कहना है कि जरदारी का उद्देश्य भारत के साथ संबंध सुधारना था, लेकिन सेना और आईएसआई ने यह सुनिश्चित किया कि दोनों देशों के बीच बढ़ती नजदीकी को समाप्त कर दिया जाए। इस हमले के बाद, भारत-पाकिस्तान संबंधों में दशकों की दूरी और अविश्वास की दीवार फिर से खड़ी हो गई।


दावे पर उठे सवाल

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाबर के दावे और वास्तविक घटनाओं के बीच समय का तालमेल नहीं बैठता। जरदारी ने 22 नवंबर को 'नो फर्स्ट यूज' का प्रस्ताव दिया था, जबकि आईएसआई द्वारा प्रशिक्षित लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादी 21 नवंबर को ही कराची से मुंबई की ओर रवाना हो चुके थे। इससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि हमले की योजना पहले से ही तैयार थी और जरदारी के बयान का उससे सीधा संबंध नहीं था।


बाबर की इस किताब ने पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक-सैन्य समीकरणों और 26/11 हमलों की पृष्ठभूमि पर नई बहस को जन्म दिया है।