क्या खालिदा जिया के अंतिम संस्कार में शामिल होकर भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में आएगा सुधार?
भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में नया मोड़
नई दिल्ली: भारत और बांग्लादेश के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम उठाया गया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर 31 दिसंबर को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के राजकीय अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहे हैं। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब ढाका और नई दिल्ली के संबंधों में कई चुनौतियाँ सामने आई हैं।
खालिदा जिया का निधन उस समय हुआ है जब उनके बेटे तारिक रहमान 17 वर्षों के निर्वासन के बाद बांग्लादेश लौटे हैं, जिससे देश की राजनीतिक स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव की संभावना है।
रिश्तों में सुधार की कोशिश
जयशंकर की इस यात्रा को केवल औपचारिकता नहीं माना जा रहा, बल्कि इसे नई दिल्ली की ओर से ढाका के साथ संबंध सुधारने का प्रयास माना जा रहा है। पिछले वर्ष छात्र आंदोलन के बाद से भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में ठंडापन आ गया था।
भारत के लिए बांग्लादेश एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार रहा है, लेकिन हाल के राजनीतिक परिवर्तनों के कारण दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी महसूस की जा रही है।
खालिदा जिया का राजनीतिक सफर
खालिदा जिया ने बांग्लादेश में दो बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उनका कार्यकाल 1991 से 1996 और फिर 2001 से 2006 तक रहा। उनके नेतृत्व को अक्सर अवामी लीग और भारत के साथ संबंधों के संतुलन के रूप में देखा जाता था।
अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने चीन के साथ संबंधों को मजबूत किया, जो भारत के लिए चिंता का विषय रहा है। विशेष रूप से उनके दूसरे कार्यकाल में बांग्लादेश का झुकाव बीजिंग की ओर बढ़ा।
भारत की चिंताएं
वर्तमान में, मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार द्वारा भारत से दूरी बनाए रखने के कारण नई दिल्ली की चिंताएं बढ़ गई हैं। भारत को डर है कि बांग्लादेश कहीं पाकिस्तान और चीन के करीब न चला जाए, जिससे क्षेत्रीय संतुलन प्रभावित हो सकता है।
इस बीच, तारिक रहमान के हालिया बयान भारत के लिए कुछ सकारात्मक संकेत प्रदान करते हैं।
तारिक रहमान के बयान
तारिक रहमान ने अंतरिम सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिना जनादेश वाली सरकार को दीर्घकालिक विदेश नीति के निर्णय लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए। उन्होंने बांग्लादेश की स्वतंत्र विदेश नीति की बात की और स्पष्ट किया कि न दिल्ली और न पिंडी, बांग्लादेश सर्वोपरि है।
इस बयान को भारत और पाकिस्तान दोनों से समान दूरी बनाए रखने के संकेत के रूप में देखा गया।
कट्टरपंथी ताकतों से दूरी
तारिक रहमान ने भारत-विरोधी मानी जाने वाली जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी पार्टियों की भी आलोचना की है। उन्होंने 1971 के युद्ध के दौरान जमात की भूमिका पर सवाल उठाए। यह रुख भारत के लिए एक सकारात्मक राजनीतिक संकेत माना जा रहा है।
