क्या पाकिस्तान का फ्रीलांसिंग हब वास्तव में एक मजबूरी है?
पाकिस्तान का फ्रीलांसिंग परिदृश्य
पाकिस्तान को अक्सर 'फ्रीलांसिंग हब' के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन यह छवि जितनी आकर्षक लगती है, वास्तविकता उतनी ही कठिन है। यह कोई रणनीतिक सफलता नहीं है, बल्कि नौकरियों, उद्योगों और अनुसंधान प्रणाली के विघटन का एक मजबूरी विकल्प बन चुका है।
फ्रीलांसिंग का उभार या सिस्टम की विफलता?
सरकारी और अर्ध-सरकारी मंचों पर यह कहा जाता है कि पाकिस्तान डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रगति कर रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि फ्रीलांसिंग का बढ़ना किसी ठोस नीति का परिणाम नहीं है। यह उस स्थिति का परिणाम है, जहां युवाओं के पास न तो स्थायी नौकरी है और न ही उद्योगों में अवसर। जब फैक्ट्रियां बंद हो जाती हैं और नई कंपनियां स्थापित नहीं होतीं, तो लोग लैपटॉप उठाकर विदेशी क्लाइंट्स की तलाश में निकल पड़ते हैं।
नौकरियों की कमी और उद्योगों का ठप होना
पाकिस्तान में पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक निवेश में लगातार गिरावट आई है। टेक्नोलॉजी, मैन्युफैक्चरिंग और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान लगभग ठहर गया है। विश्वविद्यालय डिग्री तो प्रदान कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उद्योग से जोड़ने वाला तंत्र कमजोर हो गया है। नतीजतन, शिक्षित युवा देश में अपने भविष्य को लेकर निराश हैं।
इंटरनेट बंद होने से डिजिटल अर्थव्यवस्था की असलियत
जिस डिजिटल मॉडल पर पाकिस्तान गर्व करता है, वह इंटरनेट बंद होते ही ध्वस्त हो गया। बार-बार के इंटरनेट शटडाउन ने फ्रीलांसर्स को भारी नुकसान पहुँचाया। अरबों डॉलर की कमाई रुक गई और विदेशी क्लाइंट्स का विश्वास टूट गया। यह स्पष्ट हो गया कि सरकार उस क्षेत्र को स्थिरता नहीं दे पा रही है, जिसे वह अपनी उपलब्धि मानती है।
नेतृत्व के दावों और वास्तविकता में अंतर
सेना प्रमुख असीम मुनीर ने विदेश में बसे पाकिस्तानियों को संबोधित करते हुए पलायन को 'ब्रेन गेन' बताया। लेकिन फ्रीलांसिंग के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि देश में ऐसा माहौल नहीं बचा है, जहां प्रतिभा टिक सके। लोग बाहर इसलिए नहीं जा रहे कि उन्हें अवसर मिल रहे हैं, बल्कि इसलिए जा रहे हैं क्योंकि देश में अवसर समाप्त हो चुके हैं।
फ्रीलांसरों का स्थायी समाधान नहीं
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि फ्रीलांसिंग करने वाले लोग भी पाकिस्तान में टिकने को इच्छुक नहीं हैं। जैसे ही उन्हें अवसर मिलता है, वे दुबई, यूरोप या कनाडा जाने की तैयारी करते हैं। इसका मतलब यह है कि फ्रीलांसिंग अब स्थायी समाधान नहीं, बल्कि एक ट्रांजिट सिस्टम बन गई है। यह देश में विश्वास की कमी का सबसे बड़ा संकेत है।
डिजिटल कमाई, लेकिन राज्य को लाभ नहीं
फ्रीलांसर विदेशी मुद्रा तो ला रहे हैं, लेकिन वे टैक्स प्रणाली से बाहर हैं। न तो सामाजिक सुरक्षा है और न ही दीर्घकालिक उद्योग निर्माण। इससे सरकार को तात्कालिक लाभ तो मिलता है, लेकिन भविष्य की संस्थागत ताकत नहीं बनती। यह मॉडल लंबे समय में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के बजाय कमजोर करता है।
फ्रीलांसिंग का वास्तविक परिदृश्य
पाकिस्तान का 'फ्रीलांसिंग हब' कहलाना वास्तव में एक चेतावनी है। यह दर्शाता है कि देश में नौकरी, उद्योग और अनुसंधान का ढांचा बिखर चुका है। जब तक स्थायी अवसर, विश्वसनीय इंटरनेट और नीति की स्थिरता नहीं आएगी, तब तक यह मॉडल सफलता नहीं, बल्कि मजबूरी की अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
