खालिदा जिया का निधन: तस्लीमा नसरीन की प्रतिक्रिया
खालिदा जिया का निधन
नई दिल्ली: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उन्हें तीन बार प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त था और उन्हें देश की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक माना जाता था। उनकी मृत्यु पर बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि यदि उनकी मृत्यु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करती है, तो यह सही है। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या उनकी मृत्यु उनके 31 वर्षों के निर्वासन का अंत करेगी।
तस्लीमा नसरीन का संघर्ष
तस्लीमा नसरीन, जो बांग्लादेशी मूल की एक प्रमुख लेखिका और चिकित्सक हैं, ने नारीवाद, मानवाधिकार और धर्म में महिलाओं की स्थिति पर अपने विचारों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की है। उनके विचार, विशेषकर इस्लाम की आलोचना, उन्हें 1994 में देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। तब से, वह निर्वासन में जीवन व्यतीत कर रही हैं।
उन्होंने भारत, यूरोप और अमेरिका में समय बिताया है और वर्तमान में स्वीडन की नागरिकता प्राप्त की है, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है।
तस्लीमा का ट्वीट
तस्लीमा ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, 'खालिदा जिया का निधन हो गया है। वह 80 वर्ष की थीं। एक गृहिणी से पार्टी प्रमुख बनने वाली और दस वर्षों तक प्रधानमंत्री रहने वाली, उन्होंने एक सफल जीवन जिया। शेख हसीना ने उन्हें दो साल तक जेल में रखा; इसके अलावा, मुझे नहीं लगता कि उन्हें कोई विशेष कष्ट सहना पड़ा।'
Khaleda Zia has passed away. She was 80 years old. From a housewife she became a party chief, and served as the country’s prime minister for ten years. She lived a successful life—a long life. Sheikh Hasina kept her in jail for two years; apart from that period, I don’t think she…
— taslima nasreen (@taslimanasreen) December 30, 2025
क्या प्रतिबंध हटेंगे?
तस्लीमा ने आगे लिखा, 'क्या उनकी मृत्यु के साथ उन पुस्तकों पर लगे प्रतिबंध नहीं हटेंगे जिन पर उन्होंने प्रतिबंध लगाया था? उन्हें हट जाना चाहिए। उन्होंने 1993 में मेरी पुस्तक 'लज्जा' पर प्रतिबंध लगाया। उन्होंने 2002 में 'उतल हवा' पर, 2003 में 'का' पर और 2004 में 'दोस डार्क डेज' पर प्रतिबंध लगाया। उनके जीवनकाल में उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कोई आवाज नहीं उठाई।'
निष्कासन का अनुभव
नसरीन ने लिखा, '1994 में, उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष, मानवतावादी, नारीवादी लेखिका के खिलाफ 'धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने' का मामला दर्ज किया और मुझे मेरे देश से निष्कासित कर दिया। उनके शासनकाल में मुझे घर लौटने नहीं दिया गया। क्या उनकी मृत्यु मेरे 31 वर्षों के निर्वासन का अंत करेगी? क्या अन्यायपूर्ण शासक पीढ़ी दर पीढ़ी अन्याय करते रहेंगे?'
