टुल्सा नरसंहार की गवाह वायोला फोर्ड फ्लेचर का निधन
वायोला फोर्ड फ्लेचर का निधन
ओक्लाहोमा, अमेरिका में 1921 में हुए टुल्सा रेस नरसंहार की प्रमुख गवाह वायोला फोर्ड फ्लेचर का निधन हो गया है। उनकी उम्र 111 वर्ष थी, और उनका निधन एक ऐसे अध्याय को फिर से उजागर करता है, जिसे अमेरिकी इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक माना जाता है। ग्रीनवुड क्षेत्र में बचपन में देखी गई हिंसा और तबाही की यादें उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक संजोए रखीं। शहर के मेयर ने उन्हें 'साहस और सच्चाई की प्रतीक' के रूप में याद किया।
टुल्सा जाति नरसंहार का इतिहास
31 मई 1921 को तनाव उस समय बढ़ा जब एक युवा अश्वेत युवक को बचाने के लिए कई अश्वेत पुरुष अदालत पहुंचे, जहां उनकी भिड़ंत एक सफेद भीड़ से हुई। इस संघर्ष के चलते हालात बिगड़ गए और ग्रीनवुड क्षेत्र पर सफेद भीड़ का हिंसक हमला हुआ। 'ब्लैक वॉल स्ट्रीट' के रूप में जानी जाने वाली इस समृद्ध अश्वेत बस्ती को लूटकर आग लगा दी गई। इस नरसंहार में लगभग 300 अश्वेत लोगों की जान गई और हजारों लोग बेघर हो गए।
फ्लेचर का जीवन नरसंहार के बाद
नरसंहार के बाद, फ्लेचर ने कम उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया और कई दशकों तक घरेलू नौकरियों में काम किया। उन्होंने कहा कि 1921 की भयावह घटनाएं उन्हें हमेशा सताती रहीं। सौ साल बाद, 2021 में, उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के सामने गवाही दी और कहा, 'मैं आज भी गोलियों की आवाज, जलती दुकानों और सड़क पर पड़ी लाशों को देखती हूं।' उन्होंने न्याय की मांग को कभी नहीं छोड़ा और कहा कि देश इस इतिहास को भूल सकता है, लेकिन पीड़ित कभी नहीं।
जवाबदेही और न्याय की मांग
एक आधिकारिक जांच आयोग की रिपोर्ट में यह सामने आया कि टुल्सा प्रशासन ने कुछ सफेद हमलावरों को हथियार मुहैया कराए थे। आयोग ने पीड़ितों और उनके वंशजों को मुआवजा देने की सिफारिश की, लेकिन यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका। 2021 में, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नरसंहार के 100 वर्ष पूरे होने पर टुल्सा जाकर पीड़ितों को सम्मानित किया। इस दौरान शहर ने सामूहिक कब्रों की खुदाई भी शुरू की, ताकि पीड़ितों की पहचान की जा सके।
अंतिम जीवित सर्वाइवर
फ्लेचर के निधन के बाद, 111 वर्षीया लेसी एवलिन बेनिंगफील्ड अब आखिरी जानी-मानी जीवित सर्वाइवर हैं। वह भी नरसंहार के समय एक बच्ची थीं। आज भी अमेरिका नस्लीय हिंसा और सामाजिक अन्याय के मुद्दों से जूझ रहा है। जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद, देश में प्रणालीगत नस्लवाद पर बहस ने और गति पकड़ी है, और फ्लेचर की कहानी यह याद दिलाती है कि बिना इतिहास की सच्चाइयों का सामना किए बदलाव संभव नहीं है।
