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ढाका में भारत-विरोधी प्रदर्शन: बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल

ढाका में हालिया भारत-विरोधी प्रदर्शनों ने बांग्लादेश की राजनीति में गहराते अविश्वास और अस्थिरता को उजागर किया है। प्रदर्शनकारियों ने भारतीय उच्चायोग की ओर मार्च करते हुए भारत के हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठाई। इस बीच, भारत ने सुरक्षा चिंताओं के चलते अपने वीजा आवेदन केंद्र को बंद कर दिया है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत की चुनाव संबंधी सलाह को खारिज किया है, जबकि राजनीतिक हिंसा और चुनावी अनिश्चितता का खतरा बढ़ रहा है। जानें इस संकट के पीछे के कारण और इसके क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव।
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ढाका में भारत-विरोधी प्रदर्शन: बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल

राजनीतिक अस्थिरता का प्रदर्शन

बुधवार को ढाका की सड़कों पर जो दृश्य देखने को मिला, वह भारत और बांग्लादेश के बीच बढ़ते अविश्वास और राजनीतिक अस्थिरता का संकेत था। सैकड़ों प्रदर्शनकारी ‘जुलाई यूनिटी’ के बैनर तले भारतीय उच्चायोग की ओर बढ़ते हुए भारत-विरोधी नारों के साथ राजधानी को गूंजित कर रहे थे। पुलिस ने उन्हें उत्तर बड्डा क्षेत्र में रामपुरा ब्रिज के पास रोकने का प्रयास किया, लेकिन यह स्पष्ट था कि भारत अब बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति का एक प्रमुख निशाना बन चुका है।


सुरक्षा चिंताएं और प्रदर्शनकारी मांगें

यह घटना उस समय हुई जब भारत ने पहले ही ढाका में अपने उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताओं का इजहार किया था। प्रदर्शनकारी अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और अन्य नेताओं के प्रत्यर्पण की मांग कर रहे थे, साथ ही दिल्ली को बांग्लादेश की राजनीति से दूर रहने की चेतावनी दे रहे थे। उन्होंने ‘दिल्ली या ढाका, ढाका तो है ढाका’ जैसे नारे लगाकर यह स्पष्ट किया कि भारत को अब वहां एक ‘हस्तक्षेपकारी शक्ति’ के रूप में देखा जा रहा है।


पुलिस की कार्रवाई और राजनीतिक तनाव

पुलिस ने बताया कि यह क्षेत्र राजनयिक मिशनों का केंद्र है, इसलिए सुरक्षा के मद्देनजर अतिरिक्त बल तैनात किया गया। रिपोर्टों के अनुसार, बुधवार को मुख्य सड़क पर घंटों तक यातायात ठप रहा और राजधानी का माहौल तनावपूर्ण बना रहा। प्रदर्शन का नेतृत्व ढाका विश्वविद्यालय केंद्रीय छात्र संघ के नेता एबी जुबैर कर रहे थे, जबकि ‘जुलाई विद्रोह’ से जुड़े कई संगठनों ने इसमें भाग लिया। शाम होते-होते मार्च समाप्त हो गया, लेकिन राजनीतिक तनाव कम नहीं हुआ।


भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया

इस घटनाक्रम का तत्काल प्रभाव कूटनीतिक स्तर पर भी देखने को मिला। भारत ने ढाका के जमुना फ्यूचर पार्क में स्थित भारतीय वीजा आवेदन केंद्र (आईवीएसी) को सुरक्षा कारणों से बंद कर दिया। इससे पहले, नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश के उच्चायुक्त एम रियाज हमीदुल्ला को तलब कर कड़ा विरोध दर्ज कराया और कहा कि भारतीय मिशनों की सुरक्षा से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा। भारत ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को उसके ‘राजनयिक दायित्वों’ की याद दिलाई और चरमपंथी तत्वों की गतिविधियों पर चिंता जताई।


बांग्लादेश की सरकार की प्रतिक्रिया

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश मामलों के सलाहकार एम तौहीद हुसैन ने भारत की चुनाव संबंधी सलाह को खारिज करते हुए कहा कि ढाका को अपने पड़ोसियों के उपदेश की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि शेख हसीना के शासनकाल में हुए चुनावों पर भारत चुप रहा।


राजनीतिक हिंसा और चुनावी अनिश्चितता

बांग्लादेश की राजनीति में हिंसा का खतरा और बढ़ गया है। पिछले साल के सरकार-विरोधी आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने माहौल को और विस्फोटक बना दिया है। नारायणगंज से बीएनपी के एक उम्मीदवार ने सुरक्षा कारणों से चुनाव न लड़ने की घोषणा की, जो 12 फरवरी को होने वाले संसदीय चुनावों की भयावहता को दर्शाता है। कुछ उग्र नेताओं ने भी भारत को धमकी दी है कि यदि बांग्लादेश अस्थिर हुआ, तो वह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग-थलग करने की कोशिश करेगा।


भारत के लिए सुरक्षा चिंताएं

शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय ने भी चेतावनी दी है कि बांग्लादेश में इस्लामिस्ट ताकतों को सत्ता में लाने की कोशिशें भारत के लिए एक ‘वास्तविक खतरा’ हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा अंतरिम सरकार भारत के लिए खतरा बन सकती है, जो इस्लामवादी ताकतों को सत्ता में लाने की साजिश कर रही है।


भारत की स्थिति

भारत ने स्पष्ट किया है कि वह चरमपंथियों द्वारा फैलाए जा रहे ‘झूठे नैरेटिव’ को खारिज करता है और बांग्लादेश सरकार से ठोस जांच और सबूतों की अपेक्षा रखता है। लेकिन ढाका में बढ़ती अराजकता और भारत विरोधी बयानबाजी यह संकेत दे रही है कि आने वाले दिन रिश्तों के लिए और कठिन हो सकते हैं।


दक्षिण एशिया की स्थिरता पर प्रभाव

ढाका की सड़कों पर उठती आग की लपटें केवल बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता को चुनौती दे रही हैं। भारत को खलनायक के रूप में पेश करना आसान हो सकता है, लेकिन इससे न तो बांग्लादेश के चुनाव निष्पक्ष होंगे और न ही वहां की सुरक्षा स्थिति में सुधार होगा। अंतरिम सरकार को समझना होगा कि कूटनीति में आक्रामक बयान नहीं, जिम्मेदार आचरण आवश्यक है।