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तालिबान ने पाकिस्तान पर लगाए गंभीर आरोप, शांति वार्ता में बाधा का आरोप

तालिबान ने पाकिस्तान पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि उसकी सेना और खुफिया एजेंसियां शांति वार्ता में जानबूझकर बाधा डाल रही हैं। अफगानिस्तान ने अपनी संप्रभुता की रक्षा का संकल्प लिया है और चेतावनी दी है कि यदि स्थिति बिगड़ती है, तो देश की रक्षा के लिए युवा और बुजुर्ग दोनों तैयार रहेंगे। जानें इस तनाव के पीछे की पूरी कहानी और तालिबान के कड़े रुख के बारे में।
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तालिबान ने पाकिस्तान पर लगाए गंभीर आरोप, शांति वार्ता में बाधा का आरोप

तालिबान का पाकिस्तान पर आरोप


नई दिल्ली: अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा तनाव को कम करने के लिए की गई शांति वार्ता के विफल होने के बाद, तालिबान प्रशासन ने पाकिस्तान पर गंभीर आरोप लगाए हैं। शनिवार को तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों के कुछ हिस्से जानबूझकर वार्ता में रुकावट डाल रहे हैं। उनके अनुसार, ये तत्व पाकिस्तान में बढ़ती असुरक्षा और आंतरिक संकट का दोष अफगान सरकार पर डालने का प्रयास कर रहे हैं।


पाकिस्तान का गैर-जिम्मेदार रवैया

मुजाहिद ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि इस्लामिक अमीरात ने वार्ता में ईमानदारी से भाग लिया, लेकिन पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का रवैया सकारात्मक नहीं था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों के कुछ तत्व शांति प्रक्रिया की सफलता से असंतुष्ट हैं और इसे बाधित करने का प्रयास कर रहे हैं।


तालिबान ने बताया कि 6 और 7 नवंबर को हुई बैठक में अफगान प्रतिनिधि सद्भावना से शामिल हुए थे, और उम्मीद थी कि पाकिस्तान भी गंभीरता दिखाएगा। लेकिन पाकिस्तान ने सभी सुरक्षा चुनौतियों का दोष अफगानिस्तान पर डालने की कोशिश की, जिसे तालिबान ने अस्वीकार कर दिया।


तालिबान की कड़ी चेतावनी

तालिबान ने एक बयान में कहा कि अफगानिस्तान किसी भी विदेशी शक्ति को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन नहीं करने देगा। उन्होंने यह भी कहा कि अफगान जनता और सीमाओं की रक्षा करना इस्लामिक अमीरात का धार्मिक और राष्ट्रीय दायित्व है। तालिबान ने पाकिस्तान के नागरिकों के साथ अच्छे संबंधों की बात की, लेकिन यह स्पष्ट किया कि सहयोग केवल अफगानिस्तान की जिम्मेदारियों और क्षमताओं के दायरे में होगा।


अफगान मंत्री नूरुल्लाह नूरी ने पाकिस्तानी अधिकारियों को चेतावनी दी कि वे अफगानों के धैर्य को चुनौती न दें। उन्होंने कहा कि यदि स्थिति बिगड़ती है, तो युवा और बुजुर्ग दोनों देश की रक्षा के लिए तैयार रहेंगे।


टीटीपी वार्ता और बाधाएं

जबीहुल्लाह मुजाहिद ने बताया कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और पाकिस्तान के बीच संघर्ष 2002 से चल रहा है, और यह समस्या तालिबान शासन के आने के बाद नहीं बनी। उनके अनुसार, इस्लामिक अमीरात ने दोनों पक्षों के बीच सीधी बातचीत का मंच प्रदान किया था, जिससे कुछ प्रगति भी हुई, लेकिन पाकिस्तानी सेना के कुछ गुटों ने जानबूझकर इस संवाद को बाधित किया।


सीमा पर तनाव

मुजाहिद ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की सेना के कुछ गुट अफगानिस्तान में स्थिर सरकार को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। इस्तांबुल में हुई आखिरी बैठक ने पाकिस्तान के दोहरे रवैये और अविश्वास को स्पष्ट कर दिया।


हालांकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर युद्धविराम लागू है, तालिबान को आशंका है कि पाकिस्तान बिना उकसावे के फिर से हमला कर सकता है, जिसमें ड्रोन हमले भी शामिल हो सकते हैं।