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तुर्किये की पाकिस्तान और अफगानिस्तान में शांति प्रयासों की रणनीति

तुर्किये इस समय पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच शांति बनाए रखने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। राष्ट्रपति एर्दोगन की रणनीति में तालिबान के साथ सहयोग, शरणार्थियों की समस्या, और आर्थिक विकास शामिल हैं। जानें कि तुर्किये क्यों चाहता है कि दोनों देशों के बीच संघर्ष न हो और इसके पीछे की प्रमुख वजहें क्या हैं।
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तुर्किये की पाकिस्तान और अफगानिस्तान में शांति प्रयासों की रणनीति

तुर्किये की शांति प्रयासों की दिशा


नई दिल्ली: तुर्किये इस समय पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच शांति बनाए रखने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है। राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन का उद्देश्य है कि दोनों देशों के बीच चल रहा संघर्षविराम न टूटे। इस दिशा में, तुर्किये ने अफगानिस्तान में तालिबान के साथ सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया है।


एर्दोगन ने हाल ही में बताया कि इस सप्ताह तुर्किये के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और खुफिया प्रमुख पाकिस्तान का दौरा करेंगे। वहां वे अफगानिस्तान से संबंधित वार्ताओं पर चर्चा करेंगे, ताकि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके।


अब यह जानना महत्वपूर्ण है कि तुर्किये दोनों देशों के बीच टकराव क्यों नहीं चाहता। आइए इसके पीछे की कुछ प्रमुख वजहों पर नजर डालते हैं:


शरणार्थियों की बढ़ती समस्या

तुर्किये पहले से ही बड़ी संख्या में अफगान और सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश में आश्रय दे रहा है। यदि अफगानिस्तान में संघर्ष बढ़ता है या तालिबान के खिलाफ लड़ाई तेज होती है, तो नए शरणार्थियों की लहर तुर्किये और यूरोप दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। इसलिए, तुर्किये चाहता है कि अफगानिस्तान में स्थिरता बनी रहे और लोग पलायन न करें।


आर्थिक और मानवीय सहयोग से प्रभाव बढ़ाना

तुर्किये अफगानिस्तान में स्कूल, अस्पताल और बुनियादी ढांचे के विकास में सहायता कर रहा है। इससे वहां की जनता को राहत मिलती है और तुर्किये का प्रभाव भी बढ़ता है। इसके साथ ही, तुर्की की कंपनियों को अफगानिस्तान में निवेश और व्यापार के नए अवसर भी मिल सकते हैं। यह कदम मानवीय सहायता के साथ-साथ आर्थिक रणनीति का भी हिस्सा है।


अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत करने की कोशिश

हालांकि तुर्किये ने तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन उसने संवाद और सहयोग बनाए रखा है। अंकारा खुद को मुस्लिम दुनिया और यूरोप के बीच एक संतुलित पुल के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है।


इस भूमिका के माध्यम से, तुर्किये यह दिखाना चाहता है कि वह संकटग्रस्त क्षेत्रों में भी एक प्रभावशाली और भरोसेमंद देश है। इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत होती है और वह नाटो तथा यूरोपीय देशों के बीच अपनी भूमिका को स्पष्ट कर पाता है।


काबुल हवाई अड्डे का संचालन

तुर्किये ने तालिबान के साथ एक समझौते के तहत काबुल हवाई अड्डे का प्रबंधन अपने हाथ में लिया है। यह हवाई अड्डा अफगानिस्तान का अंतरराष्ट्रीय द्वार माना जाता है। इसके संचालन के माध्यम से, तुर्किये न केवल अपनी रणनीतिक उपस्थिति बनाए रखता है, बल्कि खुद को एक विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में भी स्थापित कर रहा है।


जोखिम भी कम नहीं हैं

हालांकि यह नीति तुर्किये के लिए लाभकारी है, लेकिन इसके साथ कुछ जोखिम भी जुड़े हैं। तालिबान की मानवाधिकार स्थिति, महिलाओं की शिक्षा पर रोक और राजनीतिक अस्थिरता तुर्किये की छवि को नुकसान पहुंचा सकती है। इसके अलावा, पश्चिमी देशों से उस पर राजनीतिक दबाव भी बढ़ सकता है।