नेपाल में जेन ज़ेड आंदोलन: राजनीतिक अस्थिरता और युवा असंतोष का उभार
नेपाल की राजनीतिक स्थिति
नेपाल वर्तमान में एक ऐसे समय से गुजर रहा है, जहाँ राजनीतिक अस्थिरता, युवा असंतोष और शासन की सीमाएँ एक साथ उभर रही हैं। सड़कों पर सक्रिय 'जेन ज़ेड' युवा नए नेपाल की उस बेचैनी का प्रतीक हैं, जो पारंपरिक राजनीतिक ढाँचे और कठोर नेतृत्व शैली को स्वीकार करने से मना कर रहे हैं। वहीं, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और उनकी पार्टी सीपीएन-यूएमएल पुरानी राजनीतिक शैली में फंसे हुए हैं, जिसमें सत्ता बनाए रखने के लिए कठोरता और टकराव को प्राथमिकता दी जाती है.
सिमरा में हिंसक टकराव
हाल ही में नेपाल के बारा जिले के सिमरा शहर में हुए हिंसक टकराव ने तनावपूर्ण स्थिति को जन्म दिया, जिसका असर राजधानी काठमांडू तक महसूस किया गया। जेन ज़ेड युवाओं और UML कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष में कई लोग घायल हुए, सड़कों पर टायर जलाए गए और हवाई अड्डे पर तोड़फोड़ की घटनाएँ हुईं। यह सब तब हुआ जब UML नेता शंकर पोखरेल और महेश बसनेत युवा कार्यक्रम में शामिल होने आ रहे थे, और दोनों पक्षों के कार्यकर्ताओं के बीच एक मामूली बहस तेजी से हिंसा में बदल गई।
युवाओं का विरोध
युवाओं के विरोध की तीव्रता इस बात से स्पष्ट होती है कि उन्होंने तब तक वार्ता से इंकार कर दिया जब तक पुलिस उन छह आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करती, जिन पर युवाओं पर हमले का आरोप था। पुलिस द्वारा तीन UML नेताओं की गिरफ्तारी ने स्थिति को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन गिरफ्तारियों ने युवाओं को यह संकेत दिया कि प्रशासन उनकी शिकायतों को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
काठमांडू में फिर से टकराव
कर्फ्यू हटने के बाद बारा में स्थिति सामान्य हो रही थी, लेकिन काठमांडू में एक बार फिर दोनों समूह आमने-सामने आए। माइतीघर मंडला में घायल जेन ज़ेड युवा पूर्व प्रधानमंत्री ओली के खिलाफ धरना देने पहुंचे थे, जबकि UML की रैली के दौरान ओली ने 'नेशनल वॉलंटियर्स फोर्स' बनाने की घोषणा की। यह घोषणा कई पर्यवेक्षकों द्वारा युवा असंतोष को दबाने के इरादे से जोड़ी जा रही है।
भविष्य की चुनौतियाँ
यह स्थिति इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि युवाओं का आरोप है कि 8 सितंबर को प्रदर्शनकारी छात्रों के खिलाफ कार्रवाई में 76 लोगों की मौत हुई, जिसकी जिम्मेदारी ओली पर है। यह आरोप पीढ़ियों के संघर्ष को और तीखा बना देता है। नेपाल इस समय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है। भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शनों के कारण 9 सितंबर को केपी शर्मा ओली को पद छोड़ना पड़ा।
आगामी चुनाव और सुरक्षा
अब 5 मार्च के आम चुनाव का ऐलान हो चुका है, लेकिन UML इन चुनावों का विरोध कर रही है। पार्टी संसद को बहाल करने और प्रधानमंत्री कार्की के इस्तीफे की मांग कर रही है। दूसरी ओर, नेपाली कांग्रेस और अन्य दल चुनाव को समाधान के रूप में देख रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने चुनावों के दौरान सेना तैनात करने की सिफारिश की है, जो आगामी महीनों में तनाव की आशंका को दर्शाता है.
जेन ज़ेड का उदय
इस पूरे परिदृश्य में जेन ज़ेड का उदय सबसे जटिल और महत्वपूर्ण तत्व है। ये युवा न केवल सोशल मीडिया के दौर में पले-बढ़े हैं, बल्कि पारदर्शिता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जवाबदेह शासन की अपेक्षाएँ भी रखते हैं। वे उन राजनीतिक संस्कृतियों से समझौता करने के इच्छुक नहीं हैं, जो टकराव को समाधान मानती हैं।
संवाद और नेतृत्व की आवश्यकता
सिमरा और काठमांडू की घटनाएँ केवल स्थानीय टकराव नहीं हैं, बल्कि नेपाल के लोकतांत्रिक संक्रमण के भीतर गहरे अंतर्विरोधों की झलक हैं। यदि युवा असंतोष को केवल बल-प्रयोग से दबाने की कोशिश की गई, तो यह संकट और गहराएगा। नेपाल को संवाद, भागीदारी और नेतृत्व की एक नई शैली की आवश्यकता है। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि जेन ज़ेड केवल एक विरोध समूह नहीं है; यह वह पीढ़ी है जो भविष्य में नेपाल का नेतृत्व करने वाली है।
