पाकिस्तान का जल संकट: भारत की रणनीति और अफगानिस्तान का नया कदम
जल संसाधनों का भू-राजनीतिक महत्व
नई दिल्ली: दक्षिण एशिया में जल संसाधनों ने लंबे समय से भू-राजनीतिक तनाव को जन्म दिया है। एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि भारत अपनी तकनीकी क्षमताओं के माध्यम से सिंधु नदी के प्रवाह में बदलाव कर सकता है। पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि सिंधु बेसिन पर निर्भर है, जिससे यह मुद्दा उसकी खाद्य सुरक्षा से सीधे जुड़ता है।
सिंधु जल संधि का ऐतिहासिक संदर्भ
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि के तहत, भारत ने पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकांश जल पाकिस्तान को देने पर सहमति जताई थी, जबकि पूर्वी नदियों व्यास, रावी और सतलुज पर भारत का पूर्ण अधिकार था। अप्रैल 2025 में पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के बाद भारत ने इस संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया, जिससे उसे जल बंटवारे की कानूनी बाध्यताओं से मुक्ति मिल गई है।
पाकिस्तान की जल संकट की स्थिति
रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान की जल भंडारण क्षमता बहुत सीमित है, जो केवल 30 दिनों तक का नदी प्रवाह संग्रहीत कर सकती है। यह स्थिति मौसमी सूखे और बाढ़ के समय उसे असुरक्षित बनाती है। मई 2025 में भारत ने बिना पूर्व सूचना के चिनाब नदी पर सलाल और बगलिहार बांधों के जलाशयों की सफाई की, जिससे पाकिस्तान में अस्थायी बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। यह घटना दर्शाती है कि संधि के निलंबन के बाद भारत ने नदी प्रबंधन में अधिक रणनीतिक नियंत्रण प्राप्त कर लिया है।
भारत की जल प्रबंधन रणनीति
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत अब अपने हिस्से के जल का अधिकतम उपयोग करने के लिए ठोस कदम उठा रहा है। रावी नदी पर शाहपुरकंडी और उझ बांध परियोजनाएं इसी दिशा में उठाए गए महत्वपूर्ण कदम हैं। इसके अलावा, पश्चिमी नदियों पर किशनगंगा और रामगंगा जैसे जलविद्युत प्रोजेक्ट भी भारत की ऊर्जा और जल उपयोग क्षमता को बढ़ा रहे हैं। हालांकि भारत पूरी तरह से नदी प्रवाह को रोक नहीं सकता, लेकिन वह अपने बांधों के संचालन में बदलाव करके पाकिस्तान की निचली धारा पर प्रभाव डाल सकता है। यही कारण है कि विशेषज्ञ इसे रणनीतिक जल कूटनीति मानते हैं।
अफगानिस्तान का नया कदम
भारत-पाकिस्तान के तनाव के बीच, अफगानिस्तान ने कुनार नदी पर बांध बनाने की योजना की घोषणा की है, जिससे पाकिस्तान की एक और जलधारा पर निर्भरता प्रभावित होगी। यह निर्णय हाल ही में दोनों देशों के बीच हुई झड़पों के बाद आया है, जिसने क्षेत्रीय जल संघर्ष को और जटिल बना दिया है।
संभावित अंतरराष्ट्रीय परिणाम
IEP रिपोर्ट में कहा गया है कि सिंधु जल संधि का निलंबन पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए नए रक्षा समझौते से भी जुड़ा हो सकता है। रियाद अब इस्लामाबाद के समर्थन में खड़ा हो सकता है, जिससे दक्षिण एशिया में नए शक्ति समीकरण बन सकते हैं।
