Newzfatafatlogo

पाकिस्तान की सेना पर नया विवाद: इजराइल से सैनिकों के लिए 10,000 डॉलर की मांग

पाकिस्तान की सेना एक बार फिर विवादों में है, जब वरिष्ठ पत्रकार असमा शिराजी ने खुलासा किया कि सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने इजराइल से प्रति सैनिक 10,000 डॉलर की मांग की। इस मांग के बाद इजराइल ने केवल 100 डॉलर की पेशकश की, जिससे पाकिस्तान की 'मुस्लिम दुनिया के रक्षक' की छवि को गहरा आघात पहुंचा है। यह मामला न केवल पाकिस्तान की सैन्य सोच को उजागर करता है, बल्कि उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
 | 
पाकिस्तान की सेना पर नया विवाद: इजराइल से सैनिकों के लिए 10,000 डॉलर की मांग

पाकिस्तान की सेना विवादों में


नई दिल्ली: पाकिस्तान की सेना एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गई है। वरिष्ठ पत्रकार असमा शिराजी के हालिया दावों ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उनके अनुसार, सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने गाजा में प्रस्तावित शांति मिशन के लिए इजराइल से प्रति सैनिक 10,000 डॉलर की मांग की है।


गाजा मिशन पर उठे सवाल

रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 20-सूत्रीय गाजा शांति योजना के तहत एक अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (ISF) का गठन किया जाना था, जिसमें पाकिस्तान ने भागीदारी की इच्छा जताई थी। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा था कि गाजा में सैनिक भेजना 'हमारे लिए गर्व की बात होगी।' बताया गया कि पाकिस्तान लगभग 20,000 सैनिक भेजने की योजना बना रहा था। लेकिन अब यह मिशन 'शांति' से ज्यादा 'मुनाफे' का प्रतीक बन गया है।


10,000 डॉलर प्रति सैनिक की मांग

असमा शिराजी के अनुसार, जनरल असीम मुनीर ने इजराइल से प्रति सैनिक 10,000 डॉलर की मांग की थी, जबकि इजराइल ने केवल 100 डॉलर की पेशकश की। यदि यह दावा सही है, तो पाकिस्तान की कुल मांग लगभग 20 करोड़ डॉलर बनती है। यह कदम पाकिस्तान की सैन्य सोच को दर्शाता है, जो सिद्धांतों से अधिक लाभ को प्राथमिकता देती दिख रही है।


किराए की सेना का पुराना इतिहास

पाकिस्तान पर 'भाड़े की सेना' होने के आरोप नए नहीं हैं। 1979 में मक्का की ग्रैंड मस्जिद पर हुए कब्जे के दौरान सऊदी अरब की मदद से लेकर, अफगान युद्धों तक, पाकिस्तान ने अपनी सेना का उपयोग पैसों और तेल के सौदों में किया। हाल ही में, कतर में हुए FIFA World Cup 2022 के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों की तैनाती और उसके बाद मिले 2 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज ने भी इसी प्रवृत्ति को उजागर किया है।


मुस्लिम रक्षक की छवि पर सवाल

पाकिस्तान लंबे समय से खुद को मुस्लिम जगत का 'रक्षक' मानता आया है। लेकिन गाजा संकट में यह सौदेबाजी उसकी दोहरी नीति को उजागर करती है। इस खुलासे ने दिखाया कि इस्लामाबाद के लिए 'मानवता' नहीं, बल्कि 'मुनाफा' प्राथमिकता है। इससे उसकी नैतिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय छवि दोनों को नुकसान पहुंचा है।


गिरती साख और बढ़ता अविश्वास

अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अब पाकिस्तान को 'मर्सिनरी स्टेट' यानी 'भाड़े का देश' कहे जाने की आशंका बढ़ रही है। जहां दुनिया मध्य पूर्व में स्थिरता की कोशिश कर रही है, वहीं पाकिस्तान अपनी सेना की बोली लगा रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना पाकिस्तान की विदेश नीति को और कमजोर कर सकती है, जो पहले ही आर्थिक संकटों से जूझ रही है।