पाकिस्तान में टीएलपी का उग्र प्रदर्शन: क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

पाकिस्तान में टीएलपी का आंदोलन
लाहौर और इस्लामाबाद में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के समर्थकों का आंदोलन तेज हो गया है। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों में दो लोगों की जान चली गई है, जबकि 15 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। बुधवार रात को टीएलपी ने इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास के बाहर फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन किया, जिसके बाद स्थिति बिगड़ गई। शुक्रवार को लाहौर में हुए प्रदर्शनों ने माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया, और इस्लामाबाद की ओर मार्च की घोषणा ने पूरे देश में हलचल मचा दी।
टीएलपी और पाकिस्तानी सेना का संबंध
टीएलपी को इस्लामी कट्टरपंथी समूह माना जाता है, जिसे पाकिस्तानी सेना का करीबी सहयोगी माना जाता है। आरोप है कि सेना इस संगठन का उपयोग राजनीतिक दबाव बनाने और सरकारों को अस्थिर करने के लिए करती है। वर्तमान स्थिति में इस्लामाबाद की सड़कों पर कंटेनर लगाकर रास्ते बंद कर दिए गए हैं और इंटरनेट सेवाएं भी बाधित की गई हैं।
टीएलपी की स्थापना और प्रमुख घटनाएं
टीएलपी की स्थापना 2015 में मौलाना खादिम हुसैन रिजवी ने की थी। यह संगठन 2017 में इस्लामाबाद की 21 दिन की घेराबंदी के बाद सुर्खियों में आया। 2020 में, फ्रांस में पैगंबर के कथित कार्टूनों के खिलाफ अभियान चलाकर इसने पाकिस्तान में फ्रांसीसी राजदूत को निष्कासित करने की मांग की थी, जिससे टीएलपी की आक्रामक छवि और स्पष्ट हो गई।
सरकार द्वारा प्रतिबंध और वापसी
अप्रैल 2021 में पाकिस्तान सरकार ने टीएलपी पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके प्रमुख साद रिजवी को जेल में डाल दिया। साद, संस्थापक खादिम रिजवी के बेटे हैं। हालांकि, कुछ महीनों बाद ही यह प्रतिबंध हटा लिया गया, जिसे पाक सेना की भूमिका से जोड़ा गया।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के आरोप
लंदन में रहने वाले पाकिस्तानी कार्यकर्ता आरिफ आजाकिया का कहना है कि टीएलपी को लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की तरह ही सेना ने राजनीतिक हेरफेर के लिए खड़ा किया है। उनका मानना है कि सेना ऐसे समूहों को कभी सक्रिय और कभी निष्क्रिय कर अपने हित साधती है।
2017 का विवाद और सेना की भूमिका
अटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 के प्रदर्शनों को सेना की मध्यस्थता से समाप्त किया गया। एक वीडियो में एक सैन्य अधिकारी टीएलपी समर्थकों को पैसे देते हुए दिखाई दिए। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी राजनीति में आईएसआई की भूमिका पर सवाल उठाए थे।
सरकारों को गिराने का औज़ार
रिपोर्टों के अनुसार, 2018 के चुनावों में टीएलपी को नवाज शरीफ की पार्टी को कमजोर करने और इमरान खान की पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए उतारा गया। जब इमरान खान ने सेना से टकराव किया, तब टीएलपी फिर से सक्रिय हुआ और विरोध प्रदर्शनों ने उनकी सरकार की नींव हिला दी।