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पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान का बढ़ता आतंक: क्या है इसका कारण?

पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) का बढ़ता आतंक एक गंभीर समस्या बन चुका है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे पाकिस्तान की अफगान नीति, राजनीतिक अस्थिरता और सेना की कार्रवाई ने इस संकट को बढ़ाया है। आम जनता पर इसके प्रभाव और टीटीपी के समानांतर सत्ता बनने के संकेत भी चर्चा का हिस्सा हैं। क्या पाकिस्तान के पास इस संकट का कोई समाधान है? जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें।
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पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान का बढ़ता आतंक: क्या है इसका कारण?

पाकिस्तान की सुरक्षा स्थिति पर गंभीर संकट


तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) कभी पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक सहयोगी माना जाता था, लेकिन अब यह एक गंभीर समस्या बन चुका है। इस संगठन ने पाकिस्तानी सेना और पुलिस को खुलेआम निशाना बनाना शुरू कर दिया है। चौकियों पर हमले हो रहे हैं और जवानों की जानें जा रही हैं। सरकार इस स्थिति में असहाय नजर आ रही है। यह वही आग है जिसे पहले पड़ोसी देशों के खिलाफ भड़काया गया था, और अब यह पाकिस्तान के लिए ही खतरा बन गई है।


क्या पाकिस्तान अफगान नीति की कीमत चुका रहा है?

पाकिस्तान ने लंबे समय तक अफगान तालिबान का समर्थन किया, यह सोचकर कि इससे उसे रणनीतिक लाभ मिलेगा। लेकिन तालिबान के सत्ता में आने के बाद, उसने टीटीपी पर नियंत्रण नहीं रखा। इसके विपरीत, टीटीपी को सुरक्षित ठिकाने मिले और अफगान सीमा से हमले बढ़ गए। पाकिस्तान की शिकायतें बेअसर साबित हुई हैं, और यह नीति अब पूरी तरह से उलट गई है।


सेना की कार्रवाई क्यों असफल हो रही है?

पाकिस्तानी सेना ने कई सैन्य अभियानों का संचालन किया और बड़े दावे किए, लेकिन टीटीपी हर बार नए रूप में लौट आया। स्थानीय समर्थन खत्म नहीं हुआ है, और कबायली क्षेत्रों में विश्वास टूट गया है। सेना की मौजूदगी के बावजूद हमले जारी हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समस्या केवल सैन्य कार्रवाई से हल नहीं हो रही।


राजनीतिक अस्थिरता का आतंकवाद पर प्रभाव

पाकिस्तान में सरकारें कमजोर हैं और निर्णय लेने में देरी होती है। संसद की तुलना में सेना अधिक प्रभावशाली है। इस अस्थिर माहौल में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई बिखरी हुई है। कभी बातचीत तो कभी सैन्य ऑपरेशन, इस भ्रम ने टीटीपी को लाभ पहुंचाया है। टीटीपी ने राज्य की कमजोरी को समझ लिया है।


क्या टीटीपी समानांतर सत्ता बन रहा है?

खैबर पख्तूनख्वा और सीमावर्ती क्षेत्रों में टीटीपी का डर स्पष्ट है। वे टैक्स वसूलते हैं, धमकी भरे पत्र भेजते हैं और स्थानीय अदालतों का संचालन करते हैं। ये सभी संकेत समानांतर शासन के हैं। लोग डर के मारे चुप हैं और प्रशासन कमजोर है। यह स्थिति किसी भी देश के लिए खतरनाक होती है, और पाकिस्तान अब इसी मोड़ पर खड़ा है।


आम जनता पर बढ़ता खतरा

हमलों में मारे जाने वाले अधिकांश लोग आम नागरिक हैं। स्कूल, बाजार और मस्जिदें सभी जगह डर का माहौल है। विकास रुक गया है, निवेश नहीं आ रहा और बेरोजगारी बढ़ रही है। जनता पूछ रही है कि यह युद्ध कब समाप्त होगा, लेकिन किसी के पास इसका उत्तर नहीं है।


क्या पाकिस्तान के पास कोई समाधान है?

यदि नीति में बदलाव नहीं किया गया, तो संकट और गहरा होगा। आतंकवाद को रणनीति मानने की सोच को छोड़ना होगा। अफगान तालिबान पर स्पष्ट दबाव बनाना होगा और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना होगा। अन्यथा, टीटीपी केवल एक गले की हड्डी नहीं बनेगा, बल्कि पूरे सिस्टम को जाम कर देगा। यही पाकिस्तान की सबसे बड़ी सच्चाई है।