पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक का बढ़ता प्रभाव और अस्थिरता

तहरीक-ए-लब्बैक का उदय
तहरीक-ए-लब्बैक: पाकिस्तान वर्तमान में अपने ही बनाए गए संकट में फंस गया है। लाहौर और इस्लामाबाद में लगातार अस्थिरता का माहौल बना हुआ है, जिसके पीछे कट्टरपंथी संगठन TLP का हाथ है। यह संगठन लगभग एक दशक पहले, 2015 में स्थापित किया गया था और पहले इसे पाक सेना का प्रिय माना जाता था।
तहरीक-ए-लब्बैक का उद्देश्य
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान, जिसे TLP के नाम से भी जाना जाता है, पहले पाक सेना के लिए एक महत्वपूर्ण संगठन था। लेकिन अब यह संगठन पाकिस्तान में अराजकता का कारण बन चुका है। इस स्थिति में एक पुरानी कहावत सही साबित हो रही है, 'जब बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां सो होय'।
इस संगठन को पाक सेना ने अपने हितों के लिए तैयार किया था, ताकि सरकार पर दबाव बनाने के लिए 'सड़क की ताकत' का निर्माण किया जा सके। इसी तरह से पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे अन्य संगठनों को भी विकसित किया। लेकिन अब यह संगठन अपने ही निर्माता के लिए खतरा बन चुका है। मानवाधिकार कार्यकर्ता आरिफ आजकिया के अनुसार, TLP को भी-ए-तैयबा की तरह पाक सेना द्वारा बनाया गया था। अब यह संगठन पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन गया है। लाहौर में TLP द्वारा आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हजारों लोग शामिल हुए हैं, जो इस्लामाबाद की ओर बढ़ रहे हैं। इस प्रदर्शन में 11 लोगों की जानें गई हैं।
तहरीक-ए-लब्बैक का इतिहास
TLP ने पहले भी कई बार अराजकता फैलाई है। 2017 में, इस्लामाबाद में इस संगठन ने 21 दिनों तक घेराबंदी की थी। सरल शब्दों में कहें तो पाक सेना इस संगठन का उपयोग 'बिचौलिए' के रूप में करती है। लेकिन अब यह संगठन पूरी तरह से बेकाबू हो चुका है। TLP का नाम ही इसके उद्देश्यों को स्पष्ट करता है; 'तहरीक' का अर्थ आंदोलन और 'लब्बैक' का अर्थ हाजिर हूं होता है। TLP की रणनीति काफी अलग है, जो 'खतम-ए-नबुव्वत' जैसे तर्कों पर आधारित है और इसे भारत पर हमलों के लिए भी इस्तेमाल किया गया है। हालांकि, अब यही तर्क पाकिस्तान के लिए महंगा साबित हो रहा है। अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट में बताया गया है कि TLP को अपनी ताकत का एहसास हो चुका है।