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पाकिस्तान में संविधान संशोधन: सेना की शक्ति में वृद्धि का नया अध्याय

पाकिस्तान की संघीय कैबिनेट ने हाल ही में संविधान के 27वें संशोधन को मंजूरी दी है, जिसमें सेना की भूमिका को और मजबूत किया गया है। इस संशोधन के तहत मौजूदा सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को आजीवन 'फील्ड मार्शल' का दर्जा दिया जाएगा। यह कदम पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संरचना को कमजोर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संशोधन न केवल सेना की शक्ति को बढ़ाएगा, बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी प्रभावित करेगा। जानिए इस संशोधन के पीछे की वजहें और इसके संभावित परिणाम।
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पाकिस्तान में संविधान संशोधन: सेना की शक्ति में वृद्धि का नया अध्याय

पाकिस्तान में सेना और राजनीति का जटिल रिश्ता


नई दिल्ली: पाकिस्तान में सेना और राजनीतिक सत्ता के बीच का संबंध हमेशा से विवादास्पद रहा है। संविधान के अनुसार, सेना का मुख्य कार्य देश की सुरक्षा करना है, लेकिन पिछले सात दशकों का इतिहास दर्शाता है कि वहां वर्दी हमेशा संसद से ऊपर रही है। अब एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा में है, क्योंकि पाकिस्तान की संघीय कैबिनेट ने संविधान के 27वें संशोधन को मंजूरी दी है, जिसमें सेना की भूमिका और न्यायपालिका की संरचना में कई महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं। इस संशोधन का मसौदा संसद के ऊपरी सदन, सीनेट में पेश किया गया है। इसमें सेना से जुड़े अनुच्छेद 243 में संशोधन, नई संवैधानिक अदालत की स्थापना और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के तबादले से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संशोधन पाकिस्तान की लोकतांत्रिक प्रणाली को और कमजोर कर सकता है।


आजीवन 'फील्ड मार्शल' का दर्जा

इस संशोधन का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि मौजूदा सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल का दर्जा दिया जाएगा। यह पद आजीवन होगा, जिसका अर्थ है कि रिटायरमेंट के बाद भी उनका प्रभाव बना रहेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम लोकतंत्र के लिए नहीं, बल्कि सत्ता और सलामी की डील के लिए है। एक विशेषज्ञ ने कहा कि यह वही वर्दी है जो जनता की चुनी हुई सरकार के अधीन होनी चाहिए थी, लेकिन अब वही सरकार उसके अधीन होती जा रही है।


पाकिस्तान में सैन्य शासन का इतिहास

पाकिस्तान में अब तक चार बार सैन्य शासन लागू हो चुका है, जिसमें अयूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ का शासन शामिल है। हर बार संविधान को या तो निलंबित किया गया या नया संविधान लागू किया गया। जनरल आसिम मुनीर को 'फील्ड मार्शल' बनाने का मतलब यह है कि सेना प्रमुख को न केवल सेना के भीतर, बल्कि राजनीति में भी स्थायी शक्ति केंद्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है।


'आजीवन सलामी' का प्रतीक

'फील्ड मार्शल' की रैंक किसी निश्चित कार्यकाल तक सीमित नहीं होती। लोकतांत्रिक देशों जैसे भारत या अमेरिका में सेना प्रमुख का कार्यकाल सीमित होता है, लेकिन पाकिस्तान सरकार इस रैंक को स्थायी दर्जा देना चाहती है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सेना को और अधिक शक्तिशाली बनाने की दिशा में है। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इसे आजीवन सलामी के रूप में देखा है, जिसमें चुनी हुई सरकार ने सत्ता बचाने के लिए सेना के सामने झुकने का रास्ता चुना है।


भारत और पाकिस्तान की संविधान संबंधी यात्रा

भारत और पाकिस्तान दोनों ने एक ही दिन स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन संविधान की दिशा में दोनों देशों की यात्रा बिल्कुल अलग रही। भारत ने लोकतंत्र को अपनाया, जबकि पाकिस्तान बार-बार सत्ता और सेना के संघर्ष में उलझा रहा। भारत में संसद ने संविधान को मजबूत किया, जबकि पाकिस्तान में सेना ने इसे कमजोर किया।


भारत ने 1950 में अपना स्थायी संविधान लागू किया, जो दुनिया का सबसे लंबा और लोकतांत्रिक दस्तावेज है। अब तक भारत में 106 संवैधानिक संशोधन किए जा चुके हैं, जिनमें पंचायती राज, शिक्षा का अधिकार, जीएसटी और EWS आरक्षण जैसे ऐतिहासिक सुधार शामिल हैं। ये संशोधन साबित करते हैं कि भारत में संविधान जनता की जरूरतों की आवाज है।


संविधान का रीसेट

पाकिस्तान में 1947 से 1973 तक कोई स्थायी संविधान नहीं था। 1973 के बाद जो संविधान बना, उसे भी बार-बार सैन्य शासन के प्रभाव ने प्रभावित किया। अब तक वहां 26 संशोधन हो चुके हैं, जिनमें से अधिकांश सत्ता के समीकरणों और राजनीतिक दबावों से जुड़े हैं। जहां भारत में संविधान को सुधार किया गया, वहीं पाकिस्तान में इसे बार-बार रीसेट किया गया है।


संविधान की ताकत

भारत में संसद, न्यायपालिका और जनता ने संविधान की रक्षा की है। सुप्रीम कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत देकर संसद को सीमित किया ताकि कोई भी संशोधन संविधान की आत्मा को न बदल सके। इसके विपरीत, पाकिस्तान में न्यायपालिका कई बार सैन्य या राजनीतिक दबाव में झुकी है। यही कारण है कि भारत में संविधान वर्दी से ऊपर है, जबकि पाकिस्तान में वर्दी अब भी संविधान से ऊपर खड़ी है।