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बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को अदालत ने सुनाई मौत की सजा, जानें पूरा मामला

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका की अदालत ने मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई है। हसीना, जो वर्तमान में भारत में शरण ले रही हैं, ने इस फैसले को राजनीतिक प्रतिशोध बताया है। 1975 में हुए तख्तापलट के बाद से उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। जानें इस विवादास्पद मामले की पूरी कहानी और हसीना के शासनकाल के दौरान भारत-बांग्लादेश के संबंधों पर इसका प्रभाव।
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बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को अदालत ने सुनाई मौत की सजा, जानें पूरा मामला

शेख हसीना को मिली सजा


नई दिल्ली: ढाका की एक अदालत ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है। 78 वर्षीय हसीना इस समय भारत में शरण ले रही हैं। उन्होंने इस निर्णय को राजनीतिक प्रतिशोध करार देते हुए कहा कि यह मामला पूरी तरह से झूठा है।


1975 का तख्तापलट

शेख हसीना के जीवन में सबसे बड़ा आघात 1975 में हुआ, जब बांग्लादेश में एक सैन्य तख्तापलट हुआ। इस घटना में उनके पिता, बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति मुजीबुर रहमान, उनकी मां, तीन भाई और दो भाभियों की हत्या कर दी गई। यह सब ढाका स्थित उनके निवास पर हुआ, जबकि हसीना उस समय जर्मनी में थीं। इस त्रासदी के बाद, हसीना अपनी बहन रेहाना के साथ भारत आ गईं और काफी समय तक वहीं रहीं।


अवामी लीग की अध्यक्षता

1981 में भारत में रहते हुए, हसीना को अवामी लीग का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद, 1996 में उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री का पद संभाला। 2009 में वे फिर से सत्ता में आईं और 2024 तक बांग्लादेश की सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया। उनके कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध मजबूत हुए, जिसमें सुरक्षा, सीमा प्रबंधन, आतंकवाद के खिलाफ सहयोग और विकास परियोजनाओं पर तेजी से काम हुआ। इसी कारण, 2024 में बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत ने उन्हें शरण दी।


विवादास्पद बयान और प्रदर्शन

हसीना को अपने चौथे कार्यकाल की शुरुआत के कुछ महीनों बाद बड़े प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा। यह आंदोलन आरक्षण व्यवस्था को लेकर शुरू हुआ था। हसीना के एक बयान ने विवाद खड़ा कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि मुक्तियुद्धा के वंशजों को लाभ नहीं मिलना चाहिए, तो क्या यह लाभ पाक समर्थक मिलिशिया के वंशजों को दिया जाए? इस बयान के बाद प्रदर्शनकारी उनके खिलाफ खड़े हो गए और आंदोलन हिंसक हो गया, जिसमें 1000 से अधिक लोगों की मौत होने का दावा किया गया। स्थिति बिगड़ने पर हसीना को भारत आना पड़ा।


अदालत का फैसला

करीब 15 महीने बाद, ढाका की अदालत ने हसीना को दोषी ठहराया। अदालत ने कहा कि उन्होंने हत्याओं का आदेश दिया, नागरिकों की सुरक्षा नहीं की और अदालत के समन के बावजूद पेश नहीं हुईं। उनके अनुपस्थित रहने को भी अपराध का संकेत माना गया। हसीना ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए इसे प्रतिशोध की कार्रवाई बताया।