Newzfatafatlogo

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का निधन: राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव

बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया का निधन देश की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। उनके बेटे तारिक रहमान अब पार्टी की जिम्मेदारी संभालेंगे, जबकि आगामी चुनाव में सहानुभूति वोट मिलने की संभावना बढ़ गई है। जानें इस घटनाक्रम का राजनीतिक परिदृश्य पर क्या असर पड़ेगा और जमात-ए-इस्लामी की चिंताएँ क्या हैं।
 | 
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का निधन: राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव

खालिदा जिया का निधन और बांग्लादेश की राजनीति


नई दिल्ली: बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बीएनपी की अध्यक्ष खालिदा जिया का निधन देश की राजनीतिक स्थिति पर गहरा असर डाल सकता है। 30 दिसंबर को ढाका के एवरकेयर अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ, जब वह 80 वर्ष की थीं। उनके निधन के समय बांग्लादेश फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव की तैयारी कर रहा था।


यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दशकों में पहला चुनाव होगा जिसमें दो प्रमुख महिला नेताओं के बीच सीधी प्रतिस्पर्धा नहीं होगी। खालिदा जिया के निधन के बाद बीएनपी की नेतृत्व की जिम्मेदारी उनके बेटे तारिक रहमान पर आ गई है। उनकी हालिया वापसी को पार्टी के लिए नई ऊर्जा के रूप में देखा जा रहा था।


क्या सहानुभूति वोट मिल सकता है?

मां के निधन के बाद बीएनपी को सहानुभूति वोट मिलने की संभावना बढ़ गई है। बांग्लादेश की राजनीति में सहानुभूति का प्रभाव पहले भी देखा गया है, और पार्टी को इससे लाभ मिलने की उम्मीद है।


खालिदा जिया पिछले 36 दिनों से अस्पताल में थीं और उनकी स्थिति गंभीर थी। फिर भी, उन्होंने 29 दिसंबर को बोगरा 7 सीट से अपना नामांकन दाखिल किया था, जो बीएनपी के लिए महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र पार्टी के संस्थापक जियाउर रहमान का गृह क्षेत्र है, और खालिदा जिया यहां से तीन बार चुनाव जीत चुकी थीं। पार्टी को उम्मीद थी कि वह स्वस्थ होकर राजनीति में लौटेंगी।


तारिक रहमान की भूमिका

अब तारिक रहमान पर जिम्मेदारी है। वह बोगरा 6 और ढाका 17 सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी वापसी के बाद कहा है कि वह एक ऐसा बांग्लादेश बनाना चाहते हैं जहां सभी धर्मों के लोग सुरक्षित महसूस करें। उन्होंने शांति और संयम बनाए रखने की अपील भी की है।


जमात-ए-इस्लामी की चिंताएँ

जमात ए इस्लामी को लेकर चिंता बढ़ रही है। शेख हसीना की अवामी लीग के चुनाव से बाहर होने के बाद जमात को खुला मैदान मिल रहा है। अंतरिम यूनुस सरकार में जमात से बैन हटने के बाद कट्टरपंथी घटनाओं में वृद्धि हुई है। युवाओं का एक वर्ग भी जमात समर्थित राजनीति की ओर झुकाव दिखा रहा है।


राजनीतिक विश्लेषकों की राय

विश्लेषकों का मानना है कि यदि खालिदा जिया के निधन के बाद सहानुभूति बीएनपी और तारिक रहमान की ओर जाती है, तो जमात को सीमित किया जा सकता है। अब सभी की नजर 12 फरवरी को होने वाले चुनाव और उससे पहले बनने वाले माहौल पर है।