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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मिली मौत की सजा: जानें क्या हैं उनके विकल्प

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई गई है। इस फैसले के बाद, उनके पास दो मुख्य विकल्प हैं: बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट में अपील करना या भारत में निर्वासित जीवन जीना जारी रखना। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और हसीना की राजनीतिक स्थिति के बारे में।
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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मिली मौत की सजा: जानें क्या हैं उनके विकल्प

शेख हसीना को सुनाई गई सजा


बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 'अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण' (ICT) ने पिछले साल जुलाई में छात्रों के आंदोलन के दौरान 'मानवता के खिलाफ अपराधों' के लिए मौत की सजा सुनाई है। यह निर्णय अब तक का सबसे कठोर माना जा रहा है।


संपत्तियों की जब्ती का आदेश

न्यायाधिकरण ने सोमवार को कड़ी सुरक्षा के बीच यह फैसला सुनाया। इस फैसले में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी मृत्युदंड दिया गया, जबकि पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई। मामून ने अपने अपराध को स्वीकार कर सरकारी गवाह बनने का विकल्प चुना। इसके साथ ही, न्यायाधिकरण ने हसीना और असदुज्जमां की संपत्तियों को जब्त करने का आदेश भी दिया।


हसीना की अनुपस्थिति में चला मुकदमा

शेख हसीना का यह मुकदमा उनकी अनुपस्थिति में चला, क्योंकि वह वर्तमान में भारत में हैं। असदुज्जमां की स्थिति स्पष्ट नहीं है, जबकि मामून हिरासत में हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से हसीना और असदुज्जमां को प्रत्यर्पित करने का अनुरोध किया है, लेकिन भारत ने इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।


हसीना के पास विकल्प

विशेषज्ञों का मानना है कि शेख हसीना के पास इस फैसले के खिलाफ दो मुख्य विकल्प हैं। पहला, वह ICT की सजा को तकनीकी आधार पर बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं। इसके लिए उन्हें पहले वहां की अदालत में सरेंडर करना होगा। ICT की धारा 21 के तहत, सजा की तारीख से 30 दिन के भीतर अपील दाखिल करनी होती है। अपील दायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट को 60 दिनों के भीतर फैसला सुनाना अनिवार्य है। हसीना के लिए अपील की अंतिम तारीख 17 दिसंबर 2025 है। हालांकि, उन्होंने इसे 'पूर्वाग्रह और राजनीति से प्रेरित फैसला' बताया है, जिससे सरेंडर करने की संभावना कम लगती है।


दूसरा विकल्प यह है कि वह इस फैसले को नजरअंदाज कर भारत में रहना जारी रखें। इस स्थिति में पूरी परिस्थिति भारत की नीति पर निर्भर करती है कि हसीना को कितना समय तक निर्वासित जीवन जीने की अनुमति दी जाए। यदि वह सरेंडर नहीं करती हैं, तो ढाका लौटना मुश्किल हो जाएगा और उनकी पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध लग सकता है। इससे शेख हसीना और उनकी पार्टी का राजनीतिक अस्तित्व गंभीर संकट में पड़ सकता है।