बांग्लादेश में चुनावी गठबंधन पर महफूज आलम का विरोध
बांग्लादेश की राजनीति में नया विवाद
नई दिल्ली: बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति में जुलाई आंदोलन के प्रमुख महफूज आलम और नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के बीच एक गंभीर टकराव उत्पन्न हुआ है। इस विवाद का कारण इस्लामिक पार्टी जमात ए इस्लामी के साथ एनसीपी का चुनावी गठबंधन है। यह घटनाक्रम बांग्लादेश के आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक हलचल को बढ़ा रहा है।
जमात ए इस्लामी और एनसीपी का गठबंधन
बांग्लादेश की प्रमुख इस्लामिक पार्टी जमात ए इस्लामी ने 12 फरवरी को होने वाले संसदीय चुनाव के लिए छात्रों द्वारा स्थापित एनसीपी के साथ सीट साझा करने का समझौता किया है। एनसीपी वही पार्टी है जिसने पिछले साल के जुलाई आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को सत्ता से हटने के लिए मजबूर किया था।
महफूज आलम का अलगाव
कौन है जुलाई आंदोलन का मास्टरमाइंड?
हालांकि, इस गठबंधन ने एनसीपी के भीतर गहरी दरार पैदा कर दी है। महफूज आलम, जो जुलाई आंदोलन के प्रमुख रणनीतिकार माने जाते हैं, ने इस निर्णय से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने फेसबुक पर स्पष्ट किया कि वह अब एनसीपी का हिस्सा नहीं रहेंगे। आलम ने कहा कि वह अपने जुलाई आंदोलन के साथियों का सम्मान करते हैं, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में पार्टी से जुड़ना उनके सिद्धांतों के खिलाफ है।
एनसीपी का गठन और महफूज आलम की भूमिका
कैसे हुआ था एनसीपी का गठन?
महफूज आलम को जुलाई 2024 के आंदोलन का मास्टरमाइंड माना जाता है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने उन्हें अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलवाते हुए जुलाई क्रांति का दिमाग बताया था। यह आंदोलन स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन के बैनर तले हुआ था, जिसके बाद एनसीपी का गठन हुआ।
आलम ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले सूचना और प्रसारण सलाहकार के पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद उनके चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई थीं।
एनसीपी में बढ़ता विरोध
कितने नेताओं ने दिया इस्तीफा?
इस बीच, एनसीपी के भीतर विरोध और तेज हो गया है। पार्टी के लगभग 30 नेताओं ने जमात के साथ गठबंधन के खिलाफ एक संयुक्त पत्र जारी किया है, जिसमें दो वरिष्ठ नेताओं ने भी इस्तीफा दे दिया है। विरोध करने वाले नेताओं ने जमात के 1971 के मुक्ति संग्राम में कथित भूमिका को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया है।
