बांग्लादेश में वायरल वीडियो की सच्चाई: दीपू चंद्र दास की लिंचिंग से नहीं है संबंध
वीडियो का विवाद
नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से फैल रहा है, जिसमें बांग्लादेश पुलिस एक हिंदू युवक, दीपू चंद्र दास, को एक उग्र भीड़ के हवाले करती हुई दिखाई दे रही है। दावा किया जा रहा है कि यह वीडियो दीपू के अंतिम क्षणों का है, जिन्हें मैमनसिंह में कथित ईशनिंदा के आरोप में पीट-पीटकर मार दिया गया था।
सत्यापन में क्या निकला?
हालांकि, मीडिया की जांच में यह दावा पूरी तरह से गलत साबित हुआ है। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि वायरल वीडियो दीपू चंद्र दास की लिंचिंग से संबंधित नहीं है। यह वीडियो नवंबर महीने से इंटरनेट पर उपलब्ध है और घटना से पहले का है। बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन ने भी पुष्टि की है कि दीपू दास के खिलाफ ईशनिंदा का कोई सबूत नहीं मिला है।
वीडियो में क्या दिखा?
इस वायरल वीडियो में पुलिसकर्मी एक युवक को कॉलर पकड़कर खींचते हुए नजर आ रहे हैं। कई लोगों ने इसे शेयर करते हुए कहा कि पुलिस ने दीपू दास को कट्टरपंथी भीड़ के हवाले कर दिया। भाजपा नेता तजिंदर बग्गा समेत अन्य ने इस वीडियो के साथ भावनात्मक दावे किए हैं।
जांच में क्या आया सामने?
जांच में यह पता चला कि वीडियो सबसे पहले 18 नवंबर को एक बांग्लादेशी न्यूज पोर्टल द्वारा साझा किया गया था। उस पोस्ट में लिखा गया था कि ढाका कॉलेज के एक छात्र के साथ क्या हुआ। वीडियो में युवक खुद को ढाका कॉलेज का छात्र बताते हुए नजर आता है।
वीडियो के 29 सेकंड के आसपास युवक यह भी कहता है कि डीसी के हस्तक्षेप से उसकी जान बची। आगे के हिस्से में पुलिस अधिकारी उसे जाने के लिए कहते हुए दिखाई देते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पुलिस उसे भीड़ के हवाले नहीं करती, बल्कि छोड़ देती है।
बांग्लादेशी पत्रकारों की पुष्टि
वीडियो में युवक की टी-शर्ट पर ढाका कॉलेज का लोगो और सेशन 2022-23 लिखा हुआ है। बांग्लादेशी पत्रकारों ने पुष्टि की है कि वीडियो में दिख रहे पुलिस अधिकारी ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस के डिप्टी कमिश्नर मसूद आलम हैं। दीपू दास की मौत मैमनसिंह जिले के भालुका उपजिला में हुई थी, जो ढाका से लगभग 90 किलोमीटर दूर है।
