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बांग्लादेशी युवाओं की तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान में बढ़ती भागीदारी: एक गंभीर सुरक्षा चिंता

पाकिस्तान के खिलाफ तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की जिहादी गतिविधियों में बांग्लादेशी युवाओं की भागीदारी बढ़ रही है। हाल ही में खैबर प्रांत में दो बांग्लादेशी युवकों की मौत ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। रिपोर्टों के अनुसार, लगभग 100 बांग्लादेशी युवा टीटीपी में शामिल हैं, जिन्हें चरमपंथी गतिविधियों में धकेला गया है। यह स्थिति न केवल बांग्लादेश के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक सुरक्षा चुनौती बन चुकी है।
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बांग्लादेशी युवाओं की तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान में बढ़ती भागीदारी: एक गंभीर सुरक्षा चिंता

नई दिल्ली में बांग्लादेशी युवाओं की भूमिका


नई दिल्ली : पाकिस्तान के खिलाफ तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की जिहादी गतिविधियों में बांग्लादेशी युवाओं की सक्रियता अब स्पष्ट हो गई है। हाल ही में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए एक बड़े ऑपरेशन में यह जानकारी सामने आई कि पिछले एक वर्ष में टीटीपी में शामिल हुए आठ बांग्लादेशी लड़ाके मारे गए हैं। ये सभी खैबर प्रांत में आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं।


खैबर प्रांत में मुठभेड़

खैबर ऑपरेशन में दो बांग्लादेशी आतंकियों की मौत
स्थानीय मीडिया के अनुसार, हाल ही में खैबर प्रांत में पाकिस्तानी सेना और टीटीपी के बीच एक मुठभेड़ हुई, जिसमें बांग्लादेश के दो युवक, रतन ढल (29) और फैसल हुसैन (22), मारे गए। पुलिस के मुताबिक, ये दोनों 2024 में टीटीपी में शामिल हुए थे और कई महीनों से पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय थे। बांग्लादेश सरकार ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की है।


बांग्लादेश से भर्ती हो रहे युवा

बांग्लादेश से युवाओं की भर्ती
ढाका की मीडिया संस्था "नुक्ता" की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 100 बांग्लादेशी युवा, जिनकी उम्र 30 वर्ष से कम है, वर्तमान में टीटीपी की जंग में शामिल हैं। इनमें से अधिकांश को बेहतर जीवन के वादे पर पाकिस्तान भेजा गया और फिर उन्हें चरमपंथी गतिविधियों में शामिल किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि ढाका और अन्य बड़े शहरों में इस्लामिक एजेंटों का एक नेटवर्क सक्रिय है, जो युवाओं को कट्टरपंथ की ओर आकर्षित करता है। इन एजेंटों द्वारा युवाओं को पहले धार्मिक प्रशिक्षण दिया जाता है और फिर उन्हें पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों में भेजा जाता है।


टीटीपी का उद्देश्य और ताकत

तहरीक-ए-तालिबान की ताकत और उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक रिपोर्ट में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को दुनिया का तीसरा सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बताया गया है। इस संगठन के पास वर्तमान में 8,000 प्रशिक्षित लड़ाके हैं। इसका नेता नूर महसूद वली अफगानिस्तान में बैठकर पाकिस्तान के खिलाफ हमलों की योजना बनाता है। टीटीपी का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान को एक कट्टर इस्लामिक राष्ट्र में बदलना है।


अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच तनाव

अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच तनाव
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुताकी के अनुसार, टीटीपी की उत्पत्ति 2001-2002 में हुई, जब पाकिस्तान में आदिवासी समुदायों पर अत्याचार किए गए। इसके बाद पश्तून समुदाय ने एक सशस्त्र गुट बनाया, जिसने पाकिस्तान के खिलाफ "जिहाद" छेड़ दिया। अफगानिस्तान का कहना है कि टीटीपी में अधिकांश वे लोग शामिल हैं जिन्हें पाकिस्तान ने अपने क्षेत्रों से बेदखल किया था। दूसरी ओर, पाकिस्तान का आरोप है कि अफगानिस्तान की सरकार टीटीपी आतंकियों को शरण और हथियार प्रदान कर रही है। अफगानिस्तान सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि वह किसी भी आतंकवादी संगठन का समर्थन नहीं करती।


पाकिस्तान पर टीटीपी का प्रभाव

पाकिस्तान पर टीटीपी का भारी असर
साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान की सेना को टीटीपी के खिलाफ लड़ाई में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। अब तक लगभग 1,920 पाकिस्तानी सैनिक इन हमलों में मारे जा चुके हैं। लगातार बढ़ते आतंकवादी हमलों ने पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं।


पाकिस्तान इसे अफगान की साजिश बता रहा है
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का बढ़ता प्रभाव और बांग्लादेशी युवाओं की भागीदारी दक्षिण एशिया की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बन चुकी है। पाकिस्तान इसे अफगानिस्तान समर्थित साजिश मानता है, जबकि बांग्लादेश सरकार इस बात की जांच कर रही है कि उसके युवा कैसे चरमपंथ के जाल में फंस रहे हैं। यह स्थिति न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चुनौती है, बल्कि आतंकवाद के बढ़ते वैश्विक नेटवर्क की ओर भी इशारा करती है।