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बीजिंग में स्मॉग का संकट: चीन की प्रदूषण नियंत्रण नीति पर सवाल

बीजिंग में हालिया स्मॉग ने चीन की प्रदूषण नियंत्रण नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। AQI 216 तक पहुंचने के बाद, यह स्थिति चीन के प्रदूषण मुक्त मॉडल की वास्तविकता को उजागर करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग और दिल्ली के प्रदूषण के कारणों में समानताएं हैं, लेकिन भौगोलिक और मौसमी कारक भिन्न हैं। इस संकट ने भारत के लिए भी एक चेतावनी दी है कि प्रदूषण नियंत्रण एक निरंतर संघर्ष है, न कि एक बार की परियोजना।
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बीजिंग में स्मॉग का संकट: चीन की प्रदूषण नियंत्रण नीति पर सवाल

बीजिंग में प्रदूषण का बढ़ता स्तर

चीन, जो पहले भारत को वायु प्रदूषण के मुद्दे पर नैतिकता का पाठ पढ़ा रहा था, अब खुद स्मॉग के संकट में फंस गया है। बीजिंग का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 216 तक पहुंच गया है, जो कि 'बेहद अस्वस्थ' श्रेणी में आता है। यह स्थिति चीन के प्रदूषण नियंत्रण मॉडल पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। हाल के वर्षों में अरबों डॉलर खर्च करने के बावजूद, बीजिंग में प्रदूषण का यह स्तर एक असामान्य घटना है।


चीन की राष्ट्रीय मौसम वेधशाला ने बुधवार को कई क्षेत्रों में घने कोहरे के लिए 'येलो अलर्ट' जारी किया। इसमें कहा गया कि हेबेई, बीजिंग, तिआनजिन, हेनान, अनहुई, जिआंगसू, हुबेई, सिचुआन बेसिन और चोंगछिंग के कई हिस्से गुरुवार को घने कोहरे से प्रभावित रहेंगे।


चीन की प्रदूषण नियंत्रण नीतियों का प्रभाव

बीजिंग में प्रदूषित हवा और स्मॉग अब असामान्य माने जाते हैं। 2016 से पहले, यह शहर प्रदूषण के लिए कुख्यात था। इसके बाद, चीनी सरकार ने भारी उद्योगों को बंद करने और उन्हें शहर से बाहर स्थानांतरित करने जैसे कठोर कदम उठाए। अधिकारियों के अनुसार, सर्दियों में कोयले से चलने वाली हीटिंग को प्राकृतिक गैस और बिजली आधारित हीटिंग से बदलने पर 1 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए गए।


हाल के दिनों में, बीजिंग के प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों ने चर्चा को जन्म दिया है, खासकर जब नई दिल्ली गंभीर प्रदूषण संकट का सामना कर रही है। यह सवाल उठता है कि क्या दिल्ली को भी बीजिंग की तरह कठोर और महंगे उपायों को अपनाना चाहिए।


दिल्ली और बीजिंग के प्रदूषण के कारण

दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने बताया कि चीन ने 3,000 से अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद या स्थानांतरित किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग और दिल्ली के प्रदूषण के कारणों में कुछ समानताएं हैं, लेकिन भौगोलिक और मौसमी कारण अलग हैं। बीजिंग में मुख्य प्रदूषण के स्रोत कोयला आधारित बिजली संयंत्र, भारी उद्योग और वाहन हैं, जबकि दिल्ली में कृषि अवशेष जलाना, धूल, परिवहन और असंगठित उद्योग प्रमुख हैं।


चीन की नीति और भारत की स्थिति

सिंघुआ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, उद्योगों पर सख्त नियम लागू करने से चीन के बड़े शहरों में PM2.5 के स्तर में कमी आई है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि एकदलीय शासन में ऐसे सख्त फैसले संभव हैं, लेकिन बहुदलीय लोकतंत्र में यह मॉडल लागू करना कठिन है।


चीन ने प्रदूषण पर काबू पाने का दावा किया है, लेकिन हालिया स्मॉग ने यह साबित कर दिया है कि पर्यावरण को स्थायी रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। बीजिंग की तथाकथित सफलता अस्थायी थी, और मौसम के बदलाव के साथ स्मॉग लौट आया।


भारत के लिए सीख

भारत और चीन की परिस्थितियों में बड़ा अंतर है। भारत में प्रदूषण केवल सरकारी नीतियों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह आजीविका, खेती, ऊर्जा और सामाजिक संरचना से जुड़ा है। चीन ने उद्योग बंद किए, लेकिन भारत में ऐसा करना न केवल लोकतांत्रिक है, बल्कि व्यावहारिक भी नहीं है।


चीन का उपदेश अब उसी पर उल्टा पड़ गया है। पर्यावरण के मुद्दे पर नैतिक श्रेष्ठता का दावा करने से पहले, उसे खुद को आईने में देखना चाहिए। स्मॉग जब लौटता है, तो वह न विचारधारा देखता है, न शासन व्यवस्था, वह केवल हवा को जहरीला बनाता है।