ब्रिक्स: एकता की चुनौती और वैश्विक महत्वाकांक्षाएँ

ब्रिक्स का उदय और विकास
जब गोल्डमैन सैक्स ने 2001 में 'ब्रिक्स' शब्द का निर्माण किया, तब यह केवल चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं—ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन—का एक आकर्षक नाम था। इसे भविष्य की आर्थिक शक्ति के रूप में देखा गया। लेकिन 2009 तक, यह शब्द राजनीतिक संदर्भ में बदल गया। जब दक्षिण अफ्रीका को इसमें जोड़ा गया, तब 'ब्रिक्स' एक वास्तविक मंच बन गया, जिसमें विभिन्न भूगोल और आवाज़ें एक साझा विचार के तहत आईं कि एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था होनी चाहिए जो केवल पश्चिम पर निर्भर न हो।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
अब, 2025 तक, 'ब्रिक्स' ने 'ब्रिक्स प्लस' का रूप ले लिया है, जिसमें 11 सदस्य देश शामिल हैं और कई अन्य कतार में हैं। नए सदस्य जैसे मिस्र, ईरान, और यूएई ने इसे और भी व्यापक बना दिया है। हालांकि, एक गंभीर सवाल यह है कि क्या यह समूह वास्तव में एकजुट है? सदस्य देशों के बीच दरारें अब स्पष्ट हैं। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद, रूस का यूक्रेन युद्ध, और ब्राज़ील की बदलती विदेश नीति ने इस समूह की स्थिरता को प्रभावित किया है।
वैचारिक विविधता और असंतोष
'ब्रिक्स' के भीतर वैचारिक विविधता बहुत अधिक है। रूस जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर है, जबकि अन्य सदस्य हरित विकास की बात कर रहे हैं। यूएई चीनी तकनीक में आगे बढ़ रहा है, जबकि सऊदी अरब 'ब्रिक्स' के प्रति सकारात्मक संकेत देता है, लेकिन वॉशिंगटन से भी जुड़ा रहता है। चीन, जो इस मंच का सबसे बड़ा खिलाड़ी है, अपनी छाया बनाए रखता है। हाल ही में राष्ट्रपति शी जिनपिंग का सम्मेलन में न आना इस चिंता को बढ़ाता है कि चीन अब इस मंच को किस दृष्टिकोण से देखता है।
भविष्य की संभावनाएँ
हालांकि, 'ब्रिक्स' अप्रासंगिक नहीं हुआ है। यह मंच अब 'ग्लोबल साउथ' की प्रमुख आवाज़ बन चुका है। 'ब्रिक्स' देश पश्चिम-नियंत्रित आर्थिक ढाँचों के समानांतर वैकल्पिक व्यवस्थाएँ स्थापित कर रहे हैं। भारत के लिए यह संतुलन और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह 'ब्रिक्स' को 'ग्लोबल साउथ' का प्रवक्ता बनाना चाहता है, जबकि पश्चिमी साझेदारियों को भी बढ़ा रहा है।
संक्षेप में
'ब्रिक्स प्लस' अब पहले से कहीं अधिक बड़ा और विविधतापूर्ण मंच है, लेकिन यह पहले से अधिक बिखरा हुआ भी है। यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि 'ब्रिक्स' असफल हो गया है। यह आज भी एक ऐसा मंच है जहाँ 'ग्लोबल साउथ' की आवाज़ सुनी जाती है। लेकिन क्या यह मंच एकीकृत भू-राजनीतिक शक्ति बन चुका है? यह अभी भी एक प्रश्न है।