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भारत और ताइवान के बीच नई रणनीतिक साझेदारी: ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स में बदलाव

भारत और ताइवान के बीच एक नई डील ने एशिया की जियोपॉलिटिक्स को हिला कर रख दिया है। यह समझौता ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा निर्माण के क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत कर सकता है। ताइवान का प्रस्ताव भारत को सेमीकंडक्टर बनाने की क्षमता प्रदान करता है, जिससे चीन का एकाधिकार कमजोर होगा। जानें इस साझेदारी के दीर्घकालिक लाभ और इसके वैश्विक प्रभाव के बारे में।
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भारत और ताइवान के बीच नई रणनीतिक साझेदारी: ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स में बदलाव

एक नई डील का प्रभाव

एक नई डील ने एशिया की जियोपॉलिटिक्स को हिला कर रख दिया है। ताइवान, जो चीन का सबसे बड़ा प्रतिकूल है, ने भारत को एक ऐसा प्रस्ताव दिया है जो ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा निर्माण के क्षेत्र में भारत की स्थिति को पूरी तरह से बदल सकता है। दुर्लभ खनिजों के माध्यम से, भारत को सेमीकंडक्टर बनाने की क्षमता मिल रही है, जिससे चीन का एकाधिकार भी कमजोर हो रहा है। यह भारत और ताइवान के बीच की दोस्ती केवल एक आर्थिक सौदा नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक परिवर्तन का संकेत भी है।


चीन का खनिजों पर नियंत्रण

चीन स्थायी चुम्बकों और दुर्लभ खनिजों का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो इलेक्ट्रॉनिक, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में आवश्यक हैं। इस साल की शुरुआत में, चीन ने आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर दिया था, जिससे वैश्विक चिंता बढ़ गई थी। अमेरिका से लेकर यूरोप तक, सभी देश वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में जुट गए। चीन के पास सबसे बड़ा भंडार है, जबकि भारत के पास तीसरा सबसे बड़ा भंडार है, जो 6.9 मिलियन टन है।


रेयर अर्थ मिनिरल्स का महत्व

दुर्लभ खनिज स्थायी चुम्बकों के लिए आवश्यक हैं, जो उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चीन ने इस वर्ष की शुरुआत में इनकी आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करके वैश्विक चिंता पैदा की थी। भारत के पास 6.9 मिलियन मीट्रिक टन का भंडार है, जो केवल चीन और ब्राजील से पीछे है। हालांकि, भारत ने अभी तक इन खनिजों को चुम्बकों में संसाधित करने के लिए आवश्यक तकनीक विकसित नहीं की है।


भारत की खनिज सुरक्षा पहल

नई दिल्ली अब इस कमी को दूर करने के लिए सक्रिय कदम उठा रही है। खान मंत्रालय के माध्यम से, भारत महत्वपूर्ण खनिजों के लिए एक सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला बनाने की दिशा में काम कर रहा है। भारत ने खनिज सुरक्षा साझेदारी और हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे जैसे अंतर्राष्ट्रीय ढांचों के साथ सहयोग बढ़ाया है।


साझेदारी का दीर्घकालिक लाभ

विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौता दीर्घकालिक रणनीतिक जीत का संकेत है। भारत अपनी खनिज संपदा का उपयोग करके वैश्विक सेमीकंडक्टर दौड़ में आगे बढ़ सकता है, जबकि ताइवान को अपनी आपूर्ति श्रृंखला में स्थिरता मिलेगी। यह दोनों देशों के लिए प्रौद्योगिकी, व्यापार और सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।