माली में आतंकवाद का बढ़ता खतरा: क्या बन रहा है तालिबान का नया मॉडल?
माली की स्थिति पर संकट
नई दिल्ली: पश्चिम अफ्रीका का देश माली इस समय गंभीर संकट का सामना कर रहा है। यहाँ आतंकवादी संगठनों जैसे अल-कायदा और JNIM का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, और विशेषज्ञ इसे तालिबान की वापसी के समान मानते हैं। माली, जो कभी लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा था, अब इतना कमजोर हो चुका है कि सरकार केवल कुछ प्रमुख सैन्य ठिकानों और शहरों पर नियंत्रण रख पा रही है। अधिकांश क्षेत्रों में जिहादी समूह जेएनआईएम का प्रभाव स्पष्ट है।
जिहादियों की 'छाया सरकार'
सहेल क्षेत्र, जिसमें माली, बुर्किना फासो, चाड, नाइजर और मॉरिटानिया शामिल हैं, पहले से ही जलवायु परिवर्तन, खाद्य संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था। ऐसे में उग्रवादी समूहों को फैलने का अवसर मिला। 2022 में, जब माली की सैन्य सरकार आंतरिक संघर्षों में उलझी थी, जेएनआईएम ने तेजी से अपनी 'छाया सरकार' स्थापित कर ली। कई ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी अदालतें और टैक्स वसूली प्रणाली सरकारी व्यवस्था से अधिक प्रभावी बन गई हैं।
जिहादियों का बढ़ता नियंत्रण
2025 तक, अनुमान है कि माली का 70% से अधिक क्षेत्र या तो जिहादियों के नियंत्रण में होगा या संघर्ष का मैदान बना रहेगा। इस वर्ष स्थिति और भी बिगड़ गई है। जुलाई में, उग्रवादियों ने ईंधन की आपूर्ति रोक दी, जो सेनेगल और आइवरी कोस्ट के माध्यम से आती थी। सितंबर में, उन्होंने दक्षिणी क्षेत्रों की मुख्य सड़कों को बंद कर दिया। अक्टूबर में, अमेरिकी दूतावास ने नागरिकों को देश छोड़ने की चेतावनी दी। नवंबर में, पांच भारतीय नागरिकों का अपहरण हुआ, जिससे सुरक्षा स्थिति की गंभीरता स्पष्ट हो गई।
विस्थापन और शिक्षा पर प्रभाव
इन हालात का असर केवल माली तक सीमित नहीं है, बल्कि नाइजर, बुर्किना फासो, मॉरिटानिया और अल्जीरिया पर भी पड़ रहा है। जिहादी बेखौफ होकर सीमाओं के पार अपनी गतिविधियाँ चला रहे हैं। माली में लगभग 20 लाख लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं। कृषि नष्ट हो गई है और कई क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा लगभग ठप हो गई है। सहायता संगठनों का कहना है कि माली में धीरे-धीरे तालिबान जैसा माहौल बनता जा रहा है।
जिहादियों की मजबूत पकड़
राजधानी बामाको में सैन्य शासक मीडिया पर नियंत्रण और सैनिक परेड के माध्यम से अपनी शक्ति दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी पकड़ कमजोर हो चुकी है। वहाँ जिहादियों की पकड़ इतनी मजबूत हो गई है कि लोग न्याय और सुरक्षा के लिए उन्हीं पर निर्भर हैं।
अल-कायदा का नया गढ़
यदि जिहादी समूह राजधानी पर कब्जा कर लेते हैं, तो माली अल-कायदा का सबसे स्थिर और बड़ा गढ़ बन सकता है। यह क्षेत्र सोने की खदानों, तस्करी के रास्तों और बड़ी जनसंख्या वाला है, जिसे ये संगठन बलपूर्वक और स्थानीय गठबंधनों के माध्यम से नियंत्रित कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि माली का पतन दो तरह से हो सकता है: पहला, अफगानिस्तान मॉडल, जिसमें सेना टूट जाती है और शासन ढह जाता है; दूसरा, सोमालिया मॉडल, जिसमें केवल राजधानी का कुछ हिस्सा बचता है और बाकी देश उग्रवादी समूहों के नियंत्रण में चला जाता है।
टैक्स वसूली और घेराबंदी
इस बीच, राजधानी बामाको भी घेराबंदी का सामना कर रहा है। जिहादियों ने प्रमुख रास्तों पर चेकपोस्ट बनाकर टैक्स वसूली शुरू कर दी है। ट्रक शहर तक नहीं पहुँच पा रहे हैं, जिससे आवश्यक सामानों की भारी कमी हो रही है। बाजारों में महंगाई चरम पर है। कई गांवों में जिहादियों ने अपनी अदालतें और नियम लागू कर दिए हैं, जिसे विशेषज्ञ 'छाया सरकार' कहते हैं।
सैन्य सरकार की चुनौतियाँ
माली की सैन्य सरकार, जिसने 2020 और 2021 के तख्तापलट के बाद सत्ता संभाली थी, अब अपनी व्यवस्था बनाए रखने में संघर्ष कर रही है। पश्चिमी सहयोगियों से दूरी और विदेशी भाड़े के लड़ाकों पर निर्भरता ने सेना को कमजोर कर दिया है। जैसे-जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा तंत्र टूट रहे हैं, जनता का सरकार से विश्वास खत्म होता जा रहा है।
