सऊदी अरब का रेत आयात: निर्माण के लिए विदेशी रेत की आवश्यकता
सऊदी अरब का रेत आयात
नई दिल्ली: जब सऊदी अरब का नाम लिया जाता है, तो मन में रेगिस्तान और रेत की छवि उभरती है। लेकिन यह जानकर आश्चर्य होता है कि यह विशाल रेगिस्तानी देश निर्माण कार्यों के लिए अन्य देशों से रेत का आयात करता है।
हालांकि यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन यह सत्य है। सऊदी अरब ऑस्ट्रेलिया, चीन और बेल्जियम जैसे देशों से रेत मंगवाता है, क्योंकि वहां की रेगिस्तानी रेत इमारतों के निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं होती।
रेगिस्तान की रेत निर्माण के लिए क्यों अनुपयुक्त है?
रेगिस्तान में पाई जाने वाली रेत हवा के प्रभाव से वर्षों में बहुत चिकनी और गोल हो जाती है। ऐसे रेत कण सीमेंट और पानी के साथ सही से नहीं मिलते, जिससे बनी इमारतें मजबूत नहीं होतीं।
निर्माण के लिए आवश्यक रेत खुरदरी और नुकीली होती है, ताकि सीमेंट को अच्छी पकड़ मिल सके। यह प्रकार की रेत आमतौर पर नदियों, झीलों और समुद्र के तल से प्राप्त होती है, न कि रेगिस्तान से।
ऑस्ट्रेलिया से रेत का आयात
हाल के वर्षों में, ऑस्ट्रेलिया निर्माण योग्य रेत का एक प्रमुख सप्लायर बन गया है। 2023 में, ऑस्ट्रेलिया ने कई देशों को करोड़ों डॉलर की रेत निर्यात की। सऊदी अरब ने भी इस दौरान ऑस्ट्रेलिया से रेत खरीदी, जिसका उपयोग रेड सी प्रोजेक्ट, नीओम शहर और किद्दिया जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स में किया गया।
अन्य देश भी कर रहे हैं रेत का आयात
सऊदी अरब ही नहीं, बल्कि संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे देश भी निर्माण के लिए रेत का आयात करते हैं। दुबई और अबू धाबी जैसे शहरों में ऊंची इमारतों और आधुनिक ढांचे के लिए उच्च गुणवत्ता वाली रेत की आवश्यकता होती है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार, खाड़ी देशों में विकास के कारण रेत की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है।
वैश्विक रेत संकट
हर साल दुनिया में अरबों टन रेत का उपयोग होता है, लेकिन इनमें से बहुत कम रेत निर्माण के लिए उपयुक्त होती है। इस कारण विशेषज्ञ इसे वैश्विक रेत संकट मानते हैं। अनियंत्रित रेत खनन से नदियों का कटाव बढ़ रहा है, प्राकृतिक पर्यावरण को नुकसान हो रहा है और जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है।
संकट से निपटने के उपाय
प्राकृतिक रेत पर दबाव कम करने के लिए कई देश वैकल्पिक उपाय खोज रहे हैं। मशीन से बनी रेत और निर्माण से निकले कचरे का पुनः उपयोग ऐसे उपाय हैं। हालांकि, इन तरीकों को बड़े पैमाने पर अपनाने में समय लगेगा।
